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________________ नामचतुष्टयाध्याये चतुर्थः कारकपादः १६९ [समीक्षा] - 'पुत्रेण सहागतः, पुत्रेणागतः' इत्यादि स्थलों में 'सह' शब्द का प्रयोग - प्रयोगाभाव रहने पर तृतीया विभक्ति का विधान दोनों ही आचार्यों ने किया है । पाणिनि का सूत्र है - 'सहयुक्तेऽप्रधाने" (अ० २। ३ । १९ ) । कातन्त्रीय सूत्र में 'अप्रधान' शब्द का उल्लेख नहीं है । अतः वृत्तिकार दुर्गसिंह ने उसके समाधानार्थ कहा है- 'तृतीयापि षष्ठीवदप्रधानादेव' । अर्थात् सम्बन्ध में होने वाली षष्ठी जैसे अप्रधान शब्द में प्रवृत्त होती है, वैसे तृतीया भी अप्रधान शब्द से ही होगी | प्रधान में तो प्रथमा विभक्ति बाधिका होती है - 'तृतीयापि तत एव युज्यते, यस्माल्लिङ्गार्थस्यान्तरङ्गत्वात् प्रधानात् प्रथमैवास्ति बाधिकेति' (वि० प० ) । [ रूपसिद्धि ] 1 १. पुत्रेण सहागतः । पुत्र के साथ पिता आया । यहाँ आने वाले पिता और पुत्र में आगमन क्रिया का साक्षात् संबन्ध पिता के साथ है, अतः पिता की प्रधानता और पुत्र की अप्रधानता सिद्ध है । अप्रधान 'पुत्र' शब्द में प्रकृत सूत्र द्वारा तृतीया विभक्ति । पुत्र + टा । "इन टा” (२।१।२३) सूत्र से 'टा' को 'इन' आदेश, "अवर्ण इवर्ण ए” (१।२।२) से अ को ए -इ का लोप तथा " रटवर्णेभ्यो नो णमनन्त्यः स्वरहयवकवर्गपवर्गान्तरोऽपि " ( २।४।४८) से नकार को णकारादेश | २७. पुत्रेण सह स्थूलः । पुत्रेण सह गोमान् । पुत्रेण साकम् । पुत्रेण सार्धम् । पुत्रेण समम् । पुत्रेणागतः । पूर्ववत् प्रकृत सूत्र द्वारा 'पुत्र' शब्द से तृतीया विभक्ति ।। ३१४। ३१५. हेत्वर्थे [ २।४।३० ] [ सूत्रार्थ ] हेत्वर्थाभिधायक लिङ्ग से तृतीया विभक्ति होती है ।। ३१५ । [दु० बृ० ] हेत्वर्थे वर्तमानाल्लिङ्गात् तृतीया भवति । अन्नेन वसति । धनेन कुलम् | योग्यतामात्रविवक्षया करणे न सिध्यतीति वचनम् || ३१५ ।
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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