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________________ विषयानुक्रमणी १५. स्मै - स्मात् स्मिन् - इ आदेश तथा सु-आगम पृ० ७९ - ९९ [ सर्वनाम - संज्ञक अकारान्त लिङ्ग से होने वाले चार आदेश तथा एक आगम, . सर्वादिगण में द्विशब्द से पूर्व एवं पर में किम् शब्द का पाठ, सर्वनाम की अन्वर्थता, संज्ञा तथा उपसर्जन में सर्वनामप्रयुक्त कार्यों का अभाव, सर्वार्थप्रतिपादक जगत्कृत्स्न आदि शब्दों की सर्वनामता का अभाव, कातन्त्रीय सु-आगम के लिए पाणिनीय व्याकरण में सुट् आगम, कातन्त्रीय 'इ' आदेश के लिए पाणिनि का 'शी' आदेश, पाणिनीय दीर्घ ई- उच्चारण का विशेष प्रयोजन तथापि कातन्त्रीय ह्रस्व इ-विधान की ही संगति, अल्पादिगण - पठित शब्दों से तथा द्वन्द्व समास में वैकल्पिक इ आदेश ] १६. इ - आदेशभिन्न सर्वनाम कार्य का निषेध पृ० ९९ - १११ [ द्वन्द्वसमास - तृतीयासमास - बहुव्रीहिसमास में पाणिनि द्वारा सार्वनामिक कार्यों का निषेध न करके सर्वनाम संज्ञा का ही निषेध, व्याख्याकारों द्वारा "दिशां वा" सूत्र बनाए जाने का औचित्यसाधन ] १७. लोप, एकार- हस्व इकार आदेश २० पृ० १११ - १९ [ श्रद्धासंज्ञक वर्ण (शब्द) से परवर्ती प्रथमाविभक्ति - एकवचन - सिप्रत्यय का लोप, संज्ञापूर्वक निर्देश की सुखार्थता, तृतीया एकवचन टाप्रत्यय-षष्ठी सप्तमीद्विवचन ओस् प्रत्यय में श्रद्धासंज्ञक आकार का लोप, पाणिनि द्वारा टा के लिए आङ् का प्रयोग, 'हे श्रद्धे !' आदि में श्रद्धासंज्ञक आकार को एकारादेश, 'हे अम्ब !' आदि में अम्बार्थक शब्दस्थ आकार को ह्रस्व, 'श्रद्धे, माले' इत्यादि में औ को इ आदेश तथा कातन्त्रैकदेशीय वररुचि आदि आचार्यों का मतभेद ] - १८. ङे को यै-ऐ, ङसि को यास्-आस्, ङस् को यास्-आस् तथा ङि को साम्-आम् आदेश पृ० ११९ - २६ [ पाणिनि का प्रक्रियागौरव, याट् - आट् - स्याट् आगम - वृद्धि आदि प्रक्रिया का गौरव ]
SR No.023087
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1998
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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