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________________ २१४ कातन्त्रयाकरणम् गृह्यते । ननु जस्धातोः क्विबन्तस्य संभवात् कथं साहचर्यम् ? सत्यम् । नपुंसकाद् विहितस्य जसः शिर्भवतीत्यर्थो न घटते स्यादिसंबन्धो वा करणीयः। अन्यथा शकारस्याभावे सतीशब्दस्य विशेषबोधाय विवरणं कृतमिति भावः । यद् वा अन्यथा विशेषणं विनेत्यर्थः । ननु विशेषणार्थत्वाभावः कुत इत्याह-शकारस्येत्यादि । दण्डिनीति । ननु ‘औ च' इति कृते दी? न भवतीति घुटोऽनुवर्तनात् ? सत्यम् । घुसंबन्धमनादृत्योक्तम् ।। १६६। [समीक्षा] ‘पद्म + जस्, शस् । पयस् + जस्, शस्' इस अवस्था में कातन्त्रकार तथा पाणिनि दोनों ही 'जस्-शस्' प्रत्ययों को 'शि' आदेश करके 'पद्मानि, पयांसि' शब्दरूप सिद्ध करते हैं । अतः उभयत्र साम्य ही परिलक्षित होता है | पाणिनि का भी यही सूत्र है- "जस्शसोः शि" (अ० ७।१।२०)। [रूपसिद्धि] १. पपानि । पद्म + जस्, शस् । प्रकृत सूत्र द्वारा ‘जस्-शस्' को 'शि' आदेश, "जस्-शसी नपुंसके" (२।१।४) से घुट्संज्ञा, "धुदस्वराद् घुटि नुः" (२।२।११) से 'नु' आगम, “आगम उदनुबन्धः स्वरादन्त्यात् परः" (२।१।६) के नियमानुसार अन्तिम स्वर मकारोत्तरवर्ती अकार के बाद उसकी योजना तथा "घुटि चासंबुद्धौ" (२।२।१७) से दीर्घ आदेश । २. पयांसि । पयस् + जस्, शस् । प्रकृत सूत्र द्वारा जस्-शस् को 'शि' आदेश, जस्-शस् की घुट्संज्ञा, नु-आगम, उसकी अन्तिम स्वर यकारोत्तरवर्ती अकार के पश्चात् योजना तथा यकारोत्तरवर्ती अकार को दीर्घ (सान्तमहतो!पधायाः२।२।१८) एवं अनुस्वारादेश ।। १६६। १६७. धुस्वराद् घुटि नुः [२।२।११] [सूत्रार्थ] नपुसंक लिङ्ग में घुट के परे रहते कहीं पर 'धुट्' से पूर्व तथा कहीं पर स्वर से पर में 'नु' आगम होता है ।।१६७।
SR No.023087
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1998
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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