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________________ नामचतुष्टयाच्यापे प्रथमो धातुपादः १३०. औकारः पूर्वम् [२१११५१] [सूत्रार्थ] अग्निसंज्ञक ईकार-ऊकार से परवर्ती प्रथमा -द्वितीया विभक्तियों के द्विवचन का औकार पूर्ववर्ती स्वर को प्राप्त होता है ।। १३०। [दु. वृ०] अग्नेः पर औकारः पूर्वस्वरमापद्यते । अग्नी, पटू, बुद्धी, भेनू ।। १३०। [दु० टी०] औकारः। अविशेषात् प्रथमाद्विवचनं द्वितीयाद्विवचनं च गृह्यते । वृत्ती पूर्वस्वरमापद्यत इति स्वरग्रहणं सुखप्रतिपत्त्यर्थम् इदुतावेवाग्नी यस्मात् ।। १३०। [समीक्षा] 'अग्नि + औ, पटु + औ, बुद्धि + औ, धेनु + औ' इस अवस्था में 'औ' - स्वर पूर्ववर्ती 'इ-उ' स्वरों को प्राप्त होता है । तदनन्तर समानलक्षण दीर्घ होकर 'अग्नी, पटू, बुद्धी, धेनू' आदि शब्दरूप कातन्त्रकार के अनुसार सिद्ध होते हैं । एतदर्थ पाणिनि एकही सूत्र द्वारा पूर्वसवर्णदीर्घ का विधान करते हैं - "अषमयोः पूर्वसवर्णः" (अ०६।१।१०२)। [रूपसिद्धि] १. अग्नी। अग्नि + औ । "इदुदग्निः" (२।१।८) से अग्निसंज्ञा, प्रकृत सूत्र से औकार को इकार, "समानः सवर्णे दीर्धीभवति परश्च लोपम्"(१।२।१) से अग्निशब्द - घटित इकार को दीर्घ तथा परवर्ती इकार का लोप । २. पटू। पटु+औ । “दग्निः" (२।१।८) से अग्निसंज्ञा, प्रकृत सूत्र से औकार को उकार, "समानः सवर्णे दीर्षीभवति परश्च लोपम्" (१।२।१) से पूर्ववर्ती उकार को दीर्घ एवं परवर्ती उकार का लोप। ३. बुद्धी। बुद्धि + औ । पूर्ववत् अग्निसंज्ञा, औकार को इकार, पूर्ववर्ती इकार को दीर्घ एवं परवर्ती इकार का लोप । ४. पेनू। धेनु + औ । पूर्ववत् अग्निसंज्ञा, औकार को उकार, समानलक्षण दीर्घ तथा परवर्ती उकार का लोप ।। १३०।
SR No.023087
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1998
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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