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________________ कातन्त्रव्याकरणम् स्था ७९ सूत्रों में स्वर-व्यञ्जन-प्रकृतिभाव-अनुस्वार तथा विसर्गसन्धिविषयक नियम दताए गए हैं । 'मोदकम्' स्याद्यन्त पद है, तदनुसार यहाँ द्वितीय अध्याय में नामचतुष्टय की रचना की गई है । इसके प्रारम्भिक तीन पादों में षड्लिङ्गवाले शब्दों की सिद्धि दिलाई गई है । चतुर्थ पाद में कारकों का विवेचन है | पञ्चम पाद में तद्धित तथा पर पाद समास का वर्णन किया गया है । कारक शब्द का न तो प्रयोग हुआ 5 और न ही उसकी कोई परिभाषा ही की गई है । एतदर्थ 'विभक्ति' शब्द का है। संभवतः इसी आधार पर तिब्बतीभाषा के भी व्याकरण में विभक्ति का मिलता है । तद्धित और समास पादों के सूत्र श्लोकबद्ध हैं । इस नामचतुष्टय मक अध्याय के ६ पादों में कुल ७७+६५+६४+५२+२९+५०=३३७ व हैं । मायाकारों के अनुसार चतुर्थी- विधायक "तादर्थे" (२।४।२७) सूत्र तह न वन्द्रव्याकरण से लेकर इसमें समाविष्ट कर दिया है। उक्त वचन में ‘देहि' क्रियापद (आख्यात) है, इस अभिप्राय से नामचतुष्टय के बाद शर्यवर्मा ने आख्यात नामक तृतीय अध्याय की रचना की है, जिसमें ८ पाद तथा ३४+४+४२+९३+४८+१०२+३८+३५=४३९ सूत्र हैं । प्रथम पाद में परस्मैपद आदि आख्यात-प्रकरणोपयोगिनी कुछ संज्ञाएँ, द्वितीय पाद में वे प्रत्यय, जिनले नामधातुएँ निष्पन्न होती हैं, तृतीय पाद में द्विर्वचनविधि, चतुर्थ में संप्रसारणादि विधियाँ, पञ्चम में गुण आदि आदेश, षष्ठ में अनुषङ्गलोपादि, सप्तम में इडागमादि नया अष्टम में प्रथम वर्ण आदि आदेश निर्दिष्ट हैं । इस प्रकार आचार्य शर्ववर्मा - कारा रचित सूत्रों की कुल संख्या ७९+३३७+४३९ = ८५५ है । इसमें दुर्गसिंहद्वारा योजित किया गया भी एक सूत्र सम्मिलित है । वृक्ष' आदि शब्दों की तरह कृत्प्रत्ययसाधित अन्य शब्दों को भी आचार्य शर्ववर्मा रुट मानते थे । अतः उन्होंने कत - सूत्र नहीं बनाए । उनकी रचना वररुचि कात्यायन ने की है। इन सूत्रों की वृत्ति के प्रारम्भ में दुर्गसिंह ने कहा है वृक्षादिवदमी रूढाः कृतिना न कृताः कृतः। कात्यायनेन ते सृष्टा विबुद्धिप्रतिबुद्धये ॥ इस चतुर्थ कृत् नामक अध्याय में ६ पाद तथा ८४+६६+९५+७२+ १३-१६= ५४६ सूत्र हैं । इन दोनों आचार्यों द्वारा रचित कुल ८५५+५४६=१४०१ त्र कातकव्याकरण के मूल सूत्र माने जाते हैं। कातन्त्रव्याकरण के इन सूत्रों
SR No.023086
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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