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________________ प्रास्ताविकम् दुर्गसिंह का समाधान इस प्रकार है- "पदमध्ये चटवगदिश इति जनाशकारेषु अकारविधानम्" (कात० वृ० १।४।१२) । अर्थात् कारकप्रकरणीय (२।४।४६) सूत्र की प्रवृत्ति पद के मध्य में होती है । मध्यवर्ती तवर्ग के स्थान में चवगदिश उपपन्न होता है । जैसे – 'राज्ञः, मज्जति' इत्यादि । यहाँ पदान्तस्थ 'न्' के स्थान में 'ञ्'आदेशविधानार्थ प्रकृतसूत्र यथावत् रूप में ही बनाना उचित है। _ 'भवाञ्छूरः, भवाञ्च्शूरः' इत्यादि के लिए 'न्' के स्थान में 'न्च' आदेश विकल्प से किया गया है । पाणिनि के अनुसार तुगागम (८।३।३१), छत्व (८।४।६३), श्चुत्व (८।४।४०), च् – लोप (८।४।६५) होकर चार-चार शब्दरूप सिद्ध किए जाते हैं। इन्हें लक्ष्य कर कहा गया है - अछौ अचछा अचशा अशाविति चतुष्टयम् । रूपाणामिह तुक्-छत्व-चलोपानां विकल्पनात् ॥ 'भवाण्डीनम्, भवाण्ढौकते, भवाण्णकारेण' इत्यादि में नकार को णकारादेश होता है । पाणिनि ने "ष्टुना ष्टुः" (८।४।४१) सूत्र द्वारा यद्यपि णकारादेश का ही विधान किया है, परन्तु निमित्त टवर्ग तथा स्थानी तवर्ग का सामान्य निर्देश सभी उदाहरणों के अभाव में अवश्य ही चिन्त्य प्रतीत होता है । कातन्त्र के प्रकृतसूत्र "डढणपरस्तु णकारम्" (१।४।१४) में पठित 'डढणपरः' शब्द में 'डढणेभ्यः परः' यह तत्पुरुष नहीं है, किं च 'डढणाः परे यस्मात्' यह बहुव्रीहि माना जाता है। किन्तु ‘षण्णवतिः, षण्णगरी' आदि स्थलों में डकार से भी परवर्ती 'न्' को 'ण' आदेश अभीष्ट है । अतः तदर्थ तत्पुरुष भी व्याख्याकारों को अभीष्ट है । 'त्वं यासि, त्वं रमसे' इत्यादि में पदान्तवर्ती 'म्' को अनुस्वार आदेश होता है । "मोऽनुस्वारं व्यञ्जने" (१।४।१५) में अनुस्वारविधि का निर्देश संज्ञापूर्वक होने के कारण 'सम्राट' में अनुस्वारादेश प्रवृत्त नहीं होता है । 'त्वङ्करोषि, त्वञ्चरसि' इत्यादि में किसी भी वर्गीय वर्ण के परवर्ती होने पर पदान्त अनुस्वार को उसी वर्ग का पञ्चम वर्णआदेश होता है | पाणिनीय व्याकरण में “मोऽनुस्वारः" (८।३।२३) से अनुस्वारादेश तथा "वा पदान्तस्य" (८।४।५९) से वैकल्पिक परसवणदिश होकर उक्त रूप सिद्ध होते हैं । सामान्यतया किसी भी वर्ग के पञ्चम वर्ण को जानने की अपेक्षा परसवर्णविधि से पञ्चम वर्ण जानना अत्यन्त प्रयत्न-साध्य है । अतः पाणिनीय निर्देश की अपेक्षा कातन्त्रीय निर्देश सरल है।
SR No.023086
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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