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________________ कातन्त्रव्याकरणम् बाद ‘देहि' यह क्रियापद है । इस अभिप्राय से नामचतुष्टय के बाद शर्ववर्मा ने आख्यात नामक तृतीय अध्याय की रचना की है, जिसमें ८ पाद तथा ३४+४७+४२+९३+४८+१०२+३८+३५ = ४३९ सूत्र हैं । प्रथम पाद में परस्मैपद आदि आख्यातप्रकरणोपयोगिनी कुछ संज्ञाएँ, द्वितीय पाद में वे प्रत्यय, जिनसे नामधातुएँ निष्पन्न होती हैं । तृतीय पाद में द्विर्वचनविधि, चतुर्थ में सम्प्रसारणादि विधियाँ | पञ्चम में गुण आदि आदेश, षष्ठ में अनुषङ्गलोपादि, सप्तम में इडागमादि तथा अष्टम में प्रथमवर्णादि आदेश निर्दिष्ट हैं। व्याख्याकारों के अनुसार चतुर्थीविधायक “तादर्थे" (२।४।२७) सूत्र दुर्गसिंह ने चान्द्रव्याकरण से लेकर इसमें समाविष्ट कर दिया है । इस प्रकार आचार्य शर्ववर्मा-द्वारा रचित सूत्रों की कुल संख्या ७९+३३७+४३९= ८५५ है । इसमें दुर्गसिंह द्वारा उद्धृत एक सूत्र भी सम्मिलित है। आचार्य शर्ववर्मा 'वृक्ष' आदि शब्दों की तरह कृष्प्रत्ययसाधित शब्दों को भी रूढ मानते थे । अतः उन्होंने कृत्सूत्र नहीं बनाए । उनकी रचना वररुचि कात्यायन ने की है । इन सूत्रों की वृत्ति के प्रारम्भ में दुर्गसिंह ने कहा है - वृक्षादिवदमी रूढाः कृतिना न कृताः कृतः। कात्यायनेन ते सृष्टा विबुद्धिप्रतिबुद्धये ॥ इस चतुर्थ ‘कृत्प्रत्यय' नामक अध्याय में ६ पाद तथा ८४+६६+ ९५+७२+११३+११६ = ५४६ सूत्र हैं | इन दोनों आचार्यों द्वारा रचित कुल सूत्र ८५५+५४६=१४०१ कातन्त्रव्याकरण के मूल सूत्र माने जाते हैं। श्रीपतिदत्त ने कातन्त्रपरिशिष्ट तथा चन्द्रकान्ततर्कालंकार ने छन्दःप्रक्रिया की रचना इसे सर्वाङ्गपूर्ण बनाने के लिए की है | सम्प्रति इसके धातुपाठ में १३४७ धातुसूत्र तथा लगभग १८०० धातुएँ प्राप्त हैं | दुर्गवृत्ति आदि व्याख्याओं में इसका गणपाठ मिलता है । कम से कम २९ गणों के शब्द अवश्य ही पढ़े गए हैं। उणादिसूत्रों की रचना दुर्गसिंह ने की है । इसमें ६ पाद तथा ३९९ सूत्र हैं । ८७ कारिकाओं में निबद्ध इसका लिङ्गानुशासन आचार्य दुर्गसिंह-रचित प्राप्त होता है । परिभाषापाठ पर दुर्गसिंह तथा भावशर्मा ने वृत्तियाँ लिखी हैं । शिक्षासूत्र तथा उपसर्गसूत्र भी कातन्त्रव्याकरणानुसारी प्राप्त हो जाते हैं ।
SR No.023086
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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