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________________ कातन्त्रव्याकरणम् पर भी उक्त कार्य सम्पन्न हो जाए। इसी के फलस्वरूप 'कुरव: + आत्महितम्' इस स्थिति में विसर्ग के स्थान में उकारादेश होकर 'कुरवोत्महितम्' रूप निष्पन्न होता है। टीकाकार के अनुसार ऋषिवचन को प्रामाणिक मानकर यह प्रयोग उपपन्न होता है या फिर युगभेद से व्याकरण भी भिन्न होते हैं । अतः उस युग के व्याकरण में उक्त की व्यवस्था की गई होगी । २५८ [रूपसिद्धि] १. कोऽत्र । कः + अत्र | ककारोत्तरवर्ती अकार तथा 'अत्र' के प्रारम्भिक अकार के मध्यवर्ती विसर्ग को प्रकृत सूत्र - द्वारा उकारादेश तथा " उवणें ओ” (१२ । ३) से अ को 'ओ' आदेश (परवर्ती उ - वर्ण का लोप) कोऽत्र । = २. कोऽर्थः । कः + अर्थः । दो अकारों के मध्य में स्थित विसर्ग को उकारादेश तथा उससे पूर्ववर्ती अ को 'ओ' आदेश (परवर्ती 'उ' का लोप) = कोऽर्थः ।। ६८ । ६९. अघोषवतोश्च (91412) [सूत्रार्थ] अकार तथा घोषवान् वर्णों के मध्य में स्थित विसर्ग के स्थान में उकार आदेश होता है ।। ६९ । [दु०वृ०] अकार- घोषवतोर्मध्ये विसर्जनीय उमापद्यते । को गच्छति । को धावति अघोषवतोरिति किम् ? कः शेते ॥६९ । [दु०टी०] अघोष० । अश्च घोषवांश्चेति द्वन्द्वः । चकार उक्तसमुच्चयमात्रे ।। ६९ । [क० च०] अघोष० | अघोषवतोरिति किमिति वृत्तिः । ननु कथमिदमुच्यते यदि सूत्रमेव न क्रियते तदा को गच्छतीति स्वोदाहरणस्यासिद्धत्वात् । 'कः शेते' इत्यत्र केनापि सूत्रेण उत्वप्राप्तेरभावात् प्रत्युदाहरणस्यासङ्गतेः ? सत्यम् । “उम् वर्णयोर्मध्ये’” इत्येकयोग एवास्ताम् इति हेमकरः । अन्ये तु अघोषवतोरित्यत्र घोषवद्ग्रहेणन किम् ? आच्चेत्यास्ताम् । न च निर्निमित्ते स्यादिति वाच्यम्, “सिद्धो वर्णसमाम्नायः” (१।१।१ ) इति निर्देशादित्याहुः ।
SR No.023086
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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