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________________ २५६ कातन्वव्याकरणम् (२) व्याख्याकारों ने सिद्ध किया है कि 'कः शेते' स्थल में विसर्ग को चकारादेश, 'कः षण्डः' में विसर्ग को टकार तथा 'कः साधुः' में तकार आदेश करना यदि अभीष्ट होता तो ग्रन्थकार ने “शषसेषु वा चटतान्" इस प्रकार की सूत्र रचना की होती । उन्होंने सूत्र बनाया है – “पदान्ते धुटां प्रथमः" (३।८१)। अतः उक्त रूपों में विसर्ग के स्थान में क्रमशः शकार-षकार-सकार ही आदेश होते हैं, चकार-टकार-तकार नहीं । [रूपसिद्धि] १. कश्शेते - कः शेते । कः + शेते । शकार के परवर्ती होने पर पूर्ववर्ती विसर्ग को विकल्प से शकारादेश = कश्शेते । शकारादेश के अभाव में = कः शेते। २. कष्षण्डः - कः षण्डः । कः +षण्ड: । षकार के परवर्ती होने पर पूर्ववर्ती विसर्ग को षकारादेशः = कष्षण्डः । षकारादेश के अभाव में = कः षण्डः । ३. कस्साधुः - कः साधुः । कः + साधुः । सकार के पर में रहने पर पूर्ववर्ती विसर्ग को सकारादेश= कस्साधुः । सकारादेश के अभाव में = कः साधुः ।।६७। ६८. उमकारयोर्मध्ये (१।५।७) [सूत्रार्थ] दो अकारों के मध्य में स्थित विसर्ग को उकारादेश होता है ।।६८। [दु०वृ०] द्वयोरकारयोर्मध्ये विसर्जनीय उमापद्यते ।कोऽत्र, कोऽर्थः । पुनरत्रेति रप्रकृतिरिति परत्वाद् रेफः स्यात् ।। ६८। [दु०टी०] उम० अकारयोर्मध्ये इत्येकोऽपि शब्दोऽनेकार्थस्याभिधायक इति द्विवचनमुपपद्यते । मध्ययोगे षष्ठीयम् | "उमतोऽति" इति कृते सत्युत्तरत्रापरग्रहणं न करणीयं स्यात्, न चोद्यमेतत् । मध्यग्रहणस्य सुखार्थत्वात् । कथं "कुरवोत्महितं मन्त्रं सभायां चक्रिरे मिथः" (म०भार० ८।६।६)। इत्यकारग्रहणे ह्याकारस्यापि ग्रहणमिति ? सत्यम् | ऋषिवचनसामर्थ्यप्रवृत्तस्य न नियामकमिदम् । युगे युगे व्याकरणान्तरमिति वा ।। ६८।
SR No.023086
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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