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________________ ૨૨૪ कातन्त्रव्याकरणम् न को अनुस्वारपूर्वक शकारादेश नहीं होता ।अग्रिम "टठयोः षकारम्, तथयोः सकारम्" (१।४।९,१०) सूत्रों में भी व्यवस्थितविभाषा के आश्रयण से 'प्रशाण्टीकते, प्रशान्तरति' में मूर्धन्य षकार तथा दन्त्य सकारादेश न् के स्थान में प्रवृत्त नहीं होते | २. प्रकृतसूत्रपठित ‘अन्त' शब्द का अर्थ 'विरति' या 'अवसान' माना जाता है, जिसके फलस्वरूप 'त्वन्तरसि' में न् के स्थान में अनुस्वारपूर्वक सकारादेश नहीं होता। वस्तुतः इसे "तथयोः सकारम्” (१।४।१०) सूत्र की व्याख्या में दिखाया जाना चाहिए ।। [रूपसिद्धि] १-४. भवांश्चरति, भवांश्छादयति, भवांश्च्यवते, भवांश्यति । भवान् + चरति, भवान् + छादयति, भवान् + च्यवते, भवान् + छ्यति' स्थिति में न के स्थान में अनुस्वारपूर्वक श् आदेश ।। ५३। ५४. ठठयोः षकारम् (१।४।९) [सूत्रार्थ] पदान्तवर्ती नकार के स्थान में अनुस्वारपूर्वक मूर्धन्य षकारादेश होता है ट-ठ वर्गों के पर में रहने पर ।। ५४। [दु० वृ०] नकारः पदान्तष्टठयोः परयोः षकारमापद्यतेऽनुस्वारपूर्वम् । भवांष्टीकते, भवांष्ठकारेण ||५४। [क० च०] टठयोः । ननु ठकारेणेति किमपेक्षया करणत्वं क्रियाश्रुतेरभावात् ? सत्यम् । क्रियापदमत्र विवक्षितव्यमिति न दोष इति हेमकरः ।।५४। [समीक्षा] 'भवान् + टीकते, भवान् + ठकारेण' इस अवस्था में कातन्त्रकार न् के स्थान में अनुस्वारपूर्वक ष् आदेश करके 'भवांष्टीकते, भवांष्ठकारेण' आदि शब्दरूप सिद्ध करते हैं । पाणिनि के अनुसार यहाँ भी न् को रु, रु को विसर्ग, विसर्ग को स्,
SR No.023086
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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