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________________ १९७. सज्वलनपुंसोरनिवृत्तिः । ___ अनिवृत्तिबादर गुणस्थानवर्ती क्षपक-संज्वलन कषाय ४ अने पुरुषवेदनी जघन्यस्थिति बांधे छे. १९८. सातयशउच्चाऽऽवरणविघ्नानां सूक्ष्मः । सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानवर्ती क्षपक-सातावेदनीय, यश:नाम, उच्चगोत्र, आवरण-५ ज्ञानावरण ४ दर्शनावरण ए ९ अने ५ अंतरायनी एम १७ प्रकृतिनी जघन्यस्थिति बांधे छे. १९९. वैक्रियषट्कस्यासज्ञी। पर्याप्त भसंत्री पंचेंद्रिय तिर्यच-वैक्रियषट्कनी जघन्यस्थिति बांघे छे. २००. आयुषां सङ्ग्यपि । _____ संज्ञी भने असंज्ञी पंचेंद्रिय चारे आयुष्यनी जघन्यस्थिति बांधे छे. २०१. शेषाणां बादरपर्याप्तकाक्षः । शेष-बाकीनी ८५ प्रकृतिनी बादर पर्याप्त एकेंद्रिय जघन्यस्थिति बांधे छे. २०२. सादिध्रुवेतरोऽजघन्यः सप्तसु । सादिबंध, अनादिबंध, ध्रुवबंध अने अध्रुवबंध ए चार भांगा जाणवा अथवा उत्कृष्टबंध, जघन्यबंध, अनुकृष्टबंध अने अजघन्यबंध ए चार भांगा जाणवा. सात मुलप्रकृतिमा अजघन्यबंध सादि, अनादि, ध्रुव अने अध्रुव एम चार भेदे होय.
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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