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________________ ५3 . 'आहारकनाम अने तीर्थ करनामकर्मनी सत्ताभां मिथ्यात्व न होय.' हवे घाती प्रकृतिने कहे छे१५६. केवलद्विकावरणनिद्रापश्चकाऽऽद्यकषायद्वादशकमिथ्या त्वानि सर्वथा शेषावरणसज्वलननोकषायान्तराया देशतश्च घातिन्यः । पोताना ज्ञानादिगुणने सर्वथा हणे ते सर्वघाती अने कांहक हणे ते देशधाती. तेमां केवलद्विकावरण-केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रापंचक, पहेला बार कषाय अने मिथ्यात्व ए वीस प्रकृति सर्वघाती अने शेषावरण-मत्यादि चार शानावरणीय अने त्रण दर्शनावरणीय, संज्वलन कषाय ४, नोकषाय ९ भने अंतराय ५ ए पच्चीस प्रकृति देशघाती होय छे. हवे पुण्यप्रकृति कहे छे१५७. सुरनरत्रिकोच्चसातत्रसदशकतनूपाङ्गवज्रचतुरस्रानु पघातागुर्वादिसप्तकतिर्यगायुर्वर्णचतुष्कपश्चाक्षशुभ गमाः पुण्यं (शेषांः) पापे विवर्णचतुष्कम् । देवत्रिक, मनुष्यत्रिक, उच्चगोत्र, सातावेदनीय, प्रसनो दशको, शरीर ५, उपांग ३, वज्रऋषभनाराचसंघयण, समचतुः
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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