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________________ हवे ध्रुवबंधि प्रकृति कहे छ - (ध्रुवबन्धः) १५२. आवरणचतुर्दशकमिथ्यात्वकषायभयकुत्सावर्णचतु कागुरुलघुतैजसकार्मणनिर्माणोपघातान्तरायाणां ध्रुवं बन्धः । पोतानो हेतु होय त्यारे जे प्रकृति अवश्य बंधाय ते ध्रुव बंधी अने जे अबश्य न बधाय ते अध्रुवबंधी. तेमां ध्रुवबंधी ४७ प्रकृतिओ छे. ते आ प्रमाणे-आवरणवतुदर्शक-ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ९, मिथ्यात्वमोहनीय, कषाय १६, भयमोहनीय, दुग'छामोहनीय, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, तैजस, कार्मण, निर्माण, उपघात अने अंतराय ५ ए ४७ प्रकृतिओनो ध्रुवबंध जाणवो बाकीनी प्रकृतिओ अध्रुवबंधी जाणवी. हवे ध्रुवोदयी प्रकृति कहे छे१५३. ज्ञानचतुष्ट्यावरणमिथ्यात्वनिर्माणस्थिरास्थिर शुभाशुभतैजसकार्मणागुरुलघुवर्णचतुष्कान्तरायाणा मुदयः । पोताना उदयव्युच्छेदकाल सुधी जे प्रकृतिनो सतत उदय होय ते ध्रुवोदयी, अने जे प्रकृतिनो उदयव्युच्छेद पाम्यो होय छतां द्रव्य-क्षेत्र आदि भावने पामी फरी उदयमां आवे ते अध्रुवोदयी जाणवी. तेमां ध्रुवोदयी सत्तावीस ते मा प्रमाणेज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय. ४, मिथ्यात्व, निर्माण, स्थिर,
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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