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________________ ૩૬ १०९. मिथ्यात्वे जिनपञ्चकम् । मिथ्यात्वगुणस्थानमां जिननाम, देवद्विक अने वैक्रियद्विक ए पांच विना १०९ बांधे । निषेधनी अनुवृत्ति चाले छे । ११०. सास्वादने ऽतिर्यग्नरायुःसूक्ष्मत्रयोदशकम् । सास्वादन गुणस्थानमां तिर्य चायुष्य, मनुष्यायुष्य, सूक्ष्मत्रयोदश- सूक्ष्मत्रिक, विकलत्रिक, एकेंद्रिय, स्थावर, आतप, नपुंसकवेद, मिथ्यात्व, हुंड अने छेबट्टु ए पंदर प्रकृति बिना ९४ बांधे । १११. अननन्तचतुर्विंशतिरयते जिनपश्चकम् | अविरत गुणस्थानमां अनंतानुबंधिचतुष्क, मध्यमसंस्थान ४ मध्यम संघयण ४, अशुभ विहायोगति, नीचगोत्र, स्त्रीवेद, दुर्भगत्रिक, थीणद्धित्रिक, उद्योत अने तिर्य चद्विक पचोवीश प्रकृति विना अने जिनपंचक- जिननाम, देवद्विक अने वैक्रियद्विक ए पांच प्रकृति सहित ७५ बांधे । ११२. सातं सयोगिनि । सयोगि गुणस्थाने एक सातावेदनीय ज बांधे | ११३. न तिर्यङ्नरायुषी कार्मणे । कार्मणकाययोगमां तिर्यचायुष्य अने मनुष्यायुष्य सिवाय औदारिकमिrनी जेम बंध जाणवो । ११४. वैक्रियमिश्र । (वैक्रियकाययोगमां देवतानी जेम बंध जाणवो) वैक्रिय
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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