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________________ ३४ ९९. असुरायुरनन्तैकत्रिंशो मिश्रे । मिश्रे देवायुष्य अने अनंतानुबंधी आदि एकत्रीस-अनंतानुबंधी ४, मध्यमसंस्थान ४, मध्यमसंघयण ४, अशुभविहायोगति, नीचगोत्र, स्त्रीवेद, दुर्भगत्रिक, थीणद्धित्रिक, उद्योतनाम, तिर्यचद्विक, तिर्यचायुष्य, मनुष्यायुष्य, मनुष्यद्विक, औदारिकद्विक अने वनऋषभनाराच संघयण एम बत्रीश विना ६९ प्रकृति बंधाय । १०० ससुरायुरयते । ___अविरतगुणस्थानमा देवायुष्य सहित ७० प्रकृति बंधाय। १०१ अद्वितीयकषायो देशे । देशविरतगुणस्थानमां अप्रत्याख्यानीय चार कषाय विना ६६ प्रकृति बांधे। १०२ अपर्याप्तोऽजिनकादशः । __अपर्याप्ता तिर्यच अने मनुष्य, जिननाम आदि अगीयारजिननाम, देवद्विक, वैक्रियद्विक, आहारकद्विक, देशयुष्य अने नरकत्रिक ए अगीयार प्रकृते विना १०९ प्रकृति बांधे। हवे देवगतिने विषे बंध कहे छे१०३. एकेन्द्रियत्रिक कल्पद्वये । नारकीनी जेम देवताने बंध कहेवो पण ओघे अने मिथ्यात्वगुणस्थानमां एकेंद्रिय, स्थावर अने आतप ए प्रण सहित कहेवो. बे देवलोकमां ए ज बंध कहेवो ।
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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