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________________ मनःपर्यायज्ञानी थोडा, तेथी अवधिज्ञानी असंख्यातगुणा, तेथी मतिज्ञानी-श्रुतज्ञानी विशेष अधिक परस्पर सरखा, तेथी विभंगहामी असंख्यातगुणा, तेथी केवलज्ञानी अनंतगुणा अने तेथी मतिमज्ञानी-श्रुतअज्ञानी अनंनगुणा माहोमांहे सरखा. हवे संयमद्वारमा अल्पबहुत्व जणावे छे७५. सूक्ष्मस्तोक-परिहार-यथाख्यातसङ्ख्य-च्छेद-सामा यिकसङ्ख्य-देशाऽसङ्ख्याऽयताऽनन्तगुणाः । सूक्ष्मसंपरायसंयमी थोडा, तेथी परिहारविशुद्धिवाला संख्यातगुणा तेथी यथास्यातचारित्रवाला संख्यातगुणा तेथी छेदोपस्थापनीयचारित्रगला संख्यातगुणा, तेथी सामायिकचारित्रवाला संख्यातगुणा, तेथी देशविरत असंख्यातगुणा, तेथी अविरत अनन्तगुणा होय छे. हवे दर्शनद्वारमा अल्पबहुत्व कहे छे७६. अवधिस्तोक-चक्षुरसङ्ख्य-केवला-ऽचक्षुरनन्तगुणाः। अवधिदर्शनवाला थोडा, तेथी चक्षुदर्शनवाला असंख्या. तगुणा; तेथी केवलदर्शनवाला अनंत गुणा अने तेथी अचक्षु. दर्शनवाला अनंतगुणा होय छे हवे लेश्याद्वारमा अल्पबहुत्व कहे छे७७. उत्क्रमाव-स्तोक-सङ्ख्यद्विकानन्तद्विकाधिका लेश्याः। पश्चानुपूर्गथी लेश्या कहेवी शुक्ललेश्या, पालेश्या,
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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