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________________ अने मिश्रदृष्टिमां अनुक्रमे पहेलुं बीजं अने त्रीजु गुणस्थान. देशविरतमां पांच मुं. सूक्ष्मसंपरायचारित्रमा दशभु गुणस्थान. मनोयोग, वचनयोग, काययोग, आहारमार्गणा अने शुक्ललेश्यामा प्रथमना तेर गुणस्थान. असं शिमां प्रथमनां बे. कृष्ण, नील अने कापोत लेश्यामा प्रथमना छ. पद्म अने शुक्ललेश्याम प्रथमना सात. अनाहारमा प्रथमना बे, छेल्लां बे सहित अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानक होय छे. हवे मार्गणास्थानोमां योग कहे छे६५. अनाहारे, नरगति-पञ्चेन्द्रिय-त्रस-काया-ऽचक्षु-नर नपुंसक-कषाय - क्षायिक - क्षायोपशमिकसम्यक्त्वसज्ञि-लेश्याषट्काऽऽहार-भव्य-मति-श्रुताऽ-वधिद्विके, तिर्यगयत-स्त्री-सास्वादन-त्र्यज्ञानोपशमाऽभव्य-मिथ्यात्वे सुरनरके स्थावर एकाक्षे पवनेऽसज्ञिनि विकले मनो-वचः-सामायिक-च्छेदचक्षु-मनोज्ञाने केवलद्विके परिहार-सूक्ष्मे मिश्रे देशे यथाख्याते कार्मण-सर्वा-ऽऽहारकद्विकोनौ-दारिकद्विकोन-कार्म णौदारिकद्विक-सवैक्रियद्विका-ऽन्त्यवाग्युग् – वैक्रियद्विकोना-कार्मणौदारिकमिश्र-साधाऽन्त्यमनोवागौदा
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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