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________________ जेथी उंच-नीचपणे बोलाय ते गोत्रकर्म, दान-लाभ आदिमां विघ्न करे ते अंतगय । हवे उत्तरप्रकृतिनी भेदसंख्या कहे छे२. उत्तरा यथासङ्ख्यम् । ( पश्चनवद्वयष्टाविंशतिचतुस्युत्तरशतद्विपञ्चमेदाः ) आठ मूलप्रकृतिओनी उत्तरप्रकृति अनुक्रमे पांच, नव, बे, अट्ठावीश, चार, एकसोने त्रण, ये अने पांच भेदो छ । हवे ज्ञानावरणीयकर्मना मेद वर्णवे छे३. मति-श्रुताऽवधि-मनःपर्याय-केवलानाम् । ____ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान अने केवलज्ञान ए पांच ज्ञानोना आवरण एटले मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्याय ज्ञानावरण अने केवलज्ञानावरण ए पांच ज्ञानावरणीयकर्मना भेदो छे. ___ हवे दर्शनावरणीयकर्मना भेद जणावे छे४. चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रा-निद्रानिद्रा-प्रचला प्रचलाप्रचला-स्त्यानगृद्धि-वेदनीयानि च । चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन अने केवलदर्शन ए चार दर्शनोना आवरण एटले चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण अने केवलदर्शनाधरण तथा निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला अने स्त्यानदि ए नव दर्शनावरणीयकर्मना भेदो छे
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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