SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शास्त्र अने उज्वल परंपराओनो अभ्यास करी तेना सारभूत आ त्रण मार्गदर्शक सिद्धांतोने स्पष्टपणे स्वीकारी ते वर्ष ना पंचांगमा भादरवा सुद पांचमनो क्षय हतो तेने बदले भादरवा सुद त्रीजनो क्षय करवानु योग्यमानी पेटलादमा संघ साथे शास्त्रने परंपरानुसारे सांवत्सरिक पर्वनी यथार्थ आराधना करी त्यारबाद विश्वमा केटलुय परिवर्तन आवी गयुं छे सामाजिक राजकीय परिस्थिति पण महद् अंशे बदलाइ गइ छे आजकाल करता ६७ वर्ष जेटलो समय पसार थइ गयो छे परन्तु ए १९५२ ना सिद्धांतो आजे पण मार्गदर्शक तरीके अणनम खडा छे अने लगभग स्वीकृत पणे समग्र शासनमां ते स्वीकार्य बन्या छे. जेओ वर्षों सुधी आ सिद्धांतोनी सामे विविध निंदनीय पद्धतिओ द्वारा पोताना अहं ने पोषवा खातर शासननी अस्मिताने झाखी पाडवा लाग्या तेओ पण छेल्ला लगभग ९ थी १० वर्ष थी शांति अपवाद रूपे विगेरे शब्दोनी सजावट नीचे सांवत्सरिक सिवाय अन्य तिथिओ बाबतमा शासनना आ सत्य सिद्धांतोन स्वीकार्या छे. सं. १९५२ ना आ बनावे पूज्यश्रीने अमरता बक्षी दीधी, तेजस्वितानी आभा पूर्णरूपे हिंदमां खीली उठी लोक हृदयमा आदर सन्माननी भावना प्रगटी उठी. गौरवपूर्ण अंत : महानतानी अनेरी झलक तेओश्रीना जीवनमा प्रसरी चूकी. सात आगम वाचनाओ आगमोनु मुद्रीकरण आगमोने शीलोकीर्ण करी, ताम्रपत्रमा कोतरावी पालीताणा सुरतमां भव्य आगममंदिरो बंधावी प्रान्त अवस्थामा स्व आराधना माटे आराधनामार्ग नामना संस्कृतग्रंथनी रचना करी छेल्ला १५ दिवस अर्धपद्मासने अनशननी जेम
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy