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________________ अध्याय : ८ अपादान-कारक व्युत्पत्ति अप और आ इन दो उपसर्गों के बाद दानार्थक दा-धातु से भाववाचक ल्युट्-प्रत्यय लगकर निष्पन्न अपादान-शब्द का निर्वचन है-'अपादीयते पृथक् क्रियते' अर्थात् पृथक् किया जाना । आदान शब्द ग्रहण, धारण प्रभृति संश्लेषात्मक अर्थों में आता है, जब कि अपादान इसके ठीक विपरीत विश्लेषात्मक अर्थ में प्रयुक्त होता है । सामान्यतया सम्प्रदान और अपादान परस्पर सम्बद्ध शब्द हैं, जिनका समकालिक विकास हुआ था, क्योंकि संश्लेष तथा विश्लेष भी परस्पर सम्बद्ध हैं। ये ही उन दोनों कारकों के आधार हैं। पाणिनीय लक्षण अपादान का उक्त लौकिक अर्थ शास्त्रीय अर्थ से अनिवार्यतया सम्बद्ध होने पर भी भिन्न है । पाणिनि का अपादान-लक्षण इस प्रकार है--'ध्रुवमपायेऽपादानम्' (१।४।२४ )। अपाय उक्त विश्लेष या पृथक्करण के अर्थ में आया है । ध्रुव का' सामान्य अर्थ है-स्थिर । इसे पतंजलि ने भी स्वीकार किया है, यद्यपि कालान्तर में वैयाकरणों ने इसे अवधि के ( जहाँ से विभाग आरम्भ हो ) अर्थ में परिभाषित किया है। सूत्रार्थ है कि विश्लेष होने पर जो पदार्थ ध्रुव या स्थिर रहे वह अपादान है; यथा-'वृक्षात्पणं पतति' । वृक्ष और पर्ण के विभाग की स्थिति में पर्ण की अस्थिरता तथा वृक्ष की स्थिरता विवक्षित है, अतः वृक्ष अपादान है। सूत्र में यदि 'ध्रुव' शब्द का प्रयोग नहीं होता तो 'ग्रामादागच्छति शकटेन' इस वाक्य में विश्लेषमात्र के आधार पर शकट को भी अपादान कहा जा सकता था, किन्तु अध्रुव होने के कारण शकट अपादान नहीं है। इसी प्रकार 'ग्रामादागच्छन् कंसपात्र्यां पाणिनीदनं भुङ्क्ते' ( गाँव से आते हुए कहीं पर राह में--कांस्यपात्र में हाथ से भात खाता है ) इस वाक्य में 'कंसपात्री' को अपादान कह सकते थे, किन्तु विश्लेष होने पर भी यह ध्रुवत्व के अभाव में अपादान नहीं। इस पर कहा जा सकता है कि परत्व के कारण करण तथा अधिकरण संज्ञाएँ अपादान-संज्ञा की प्राप्ति रोक देती हैं । अतएव सूत्रस्थ 'ध्रुव' पद का प्रयोजन दिखलाने के लिए पतञ्जलि दूसरे प्रत्युदाहरण देते हैं-वृक्षस्य पर्ण पतति, कुड्यास्य पिण्डः ( दीवाल का टुकड़ा ) पतति । पतनक्रिया १. 'ध्रु गतिस्थैर्ययोः इत्यस्मात्कुटादेः पचाद्यच् । ये तु ध्रुव स्थैर्य इति पठन्ति तेषामिगुपधलक्षणः कप्रत्ययः' । -श० को० २, पृ० ११५
SR No.023031
Book TitleSanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Surbharti Prakashan
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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