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________________ अध्याय : ५ कर्म-कारक व्युत्पत्ति कृ-धातु ( डुकृञ् करणे, तनादि, उभय ० ) से भाववाचक मनिन्-प्रत्यय' लगाकर निष्पन्न किये गये 'कर्म' ( प्राति०–कर्मन् ) का वास्तविक अर्थ क्रिया है। इसी अर्थ में वैशेषिक दर्शन में यह एक पदार्थ-विशेष है । इस प्रकार यह चलनात्मक तथा संयोगविभाग के अनुकूल होता है। किन्तु भावेतर अर्थ में भी इसका निर्वचनजन्य अर्थ प्रवृत्त हुआ है, जिससे दर्शनशास्त्र में, विशेषतः आचारशास्त्र में फल की कामना से किये गये कार्यों को 'कर्म' कहा गया है-'क्रियते फलाथिभिरिति कर्म धर्माधर्मात्मकम्'२ । कार्य के अर्थ में इस कर्मशब्द का तन्त्र, हठयोग, धर्मशास्त्र, पूर्वमीमांसा, वेदान्त' इत्यादि शास्त्रों में विभिन्न प्रकार से विश्लेषण किया गया है। सर्वत्र इसका निर्वचन होगा-'यत् क्रियते तत्कर्म' अर्थात् जिस पर कृ-धातु का फल पड़े, जिसे किया जाय । व्याकरण में इसी अर्थ को थोड़ा अधिक व्यापक बनाकर ग्रहण किया जाता है । अन्य शास्त्र केवल कृ-धातु से कर्म का सम्बन्ध मानते हैं और उसी में लौकिक व्यवहार भी चलता है, किन्तु व्याकरण सभी सकर्मक धातुओं तथा कुछ स्थितियों में अकर्मक धातुओं से भी कर्म का सम्बन्ध स्वीकार करता है। यह दूसरी बात है कि इन धातुओं का भी रूपान्तरण 'करोति' में हो सकता है। ___'भाव' अर्थ वाले कर्म-शब्द ( करना, क्रिया ) की 'कार्य' अर्थ तक की यात्रा अत्यन्त संघटित है, दोनों समन्वित हैं । संस्कृत के सभी धातुओं में, चाहे वे सकर्मक हों या अकर्मक, भाववाचक प्रत्यय लगाकर उन्हें 'करोति' क्रिया का कर्म बनाया जा सकता है; यथा-दानं करोति ( ददाति ), अध्ययनं करोति ( अधीते), शयनं करोति ( शेते ), लज्जां करोति ( लज्जते ) । इससे एक ओर जहाँ उनका भाव रूप अर्थ १. 'सर्वधातुभ्यो मनिन् । क्रियत इति कर्म' -सि० को० उणादि-सूत्र ५८४ २. सर्वदर्शनसंग्रह, शैवदर्शन, पृ० ३४५ । ३. छह कर्म-शान्तिकरण, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण । ४. छह कर्म-धौति, वस्ति, नेति, नौलिक, त्राटक, कपालभाति । ५. तीन कर्म-नित्य ( सन्ध्या-वन्दनादि), काम्य (यागादि ), नित्य-काम्य ( एकादशीव्रतादि )। ६. तीन कर्म-नित्य ( जिसे न करने से हानि हो), नैमित्तिक ( अनियत निमित्तवाले - ग्रहण, श्राद्धादि ), काम्य ( अश्वमेधादि)। ७. पुण्य-पापजनक कार्य । विविध कर्म-संचित, प्रारम्भ, क्रियमाण । ११०
SR No.023031
Book TitleSanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Surbharti Prakashan
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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