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________________ संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्त्वानुशीलन 'सिद्धस्याभिमुखीभावमात्रं सम्बोधनं विदुः । प्राप्ताभिमुख्यो यर्थात्मा क्रियासु विनियुज्यते' ॥ ---वा०प० ३।७।१६३ ___जिसका रूप निश्चित हो चुका है ऐसे सिद्ध पदार्थ को क्रिया में लगाने के लिए ( विनियोगार्थ ) कर्ता अपनी ओर अभिमुख करता है। इसी अभिमुख करने को सम्बोधन कहते हैं, जो प्रातिपदिकार्थमात्र से कुछ अधिक अर्थ धारण करता है । इसीलिए 'प्रातिपदिकार्थ ०' सूत्र से प्रथमा नहीं करके इसकी विभक्ति के उपादान के लिए 'सम्बोधने च' सूत्र देना पड़ा है। ___ सम्बोधन को अभिमुखीकरण-मात्र कह देने से इसकी व्यावृत्ति कर्मादि साधनों से होती है। अभिमुखीकरण के बाद वह पदार्थ सन्नद्ध ( प्राप्ताभिमुख्य ) हो जाता है। अब उसकी नियुक्ति क्रियासाधन में हो सकती है, अतः उसमें कर्तृत्वशक्ति का आधान होता है। अतः सम्बोधन परम्परा से क्रिया का उपकारक हो सकता है, साक्षात् नहीं । जैसे—मां पाहि विश्वेश्वर । इसमें पा-धातु से विश्वेश्वर का साक्षात् सम्बन्ध नहीं है। अन्यत्र आसक्त विश्वेश्वर को वक्ता स्वक्रिया में नियोग के उद्देश्य से अभिमुख कर रहा है। जब वे अभिमुख हो जायेंगे तब 'त्वम्' के रूप में उनका प्रतिनिधि ( सर्वनाम ) पा-धातु से साक्षात् सम्बद्ध होगा। क्रिया से इस प्रकार परम्परया सम्बन्ध होने पर भी सम्बोधन पदार्थमात्र ही रहता है, वाक्यार्थ नहीं होता'सम्बोधनं न वाक्यार्थ इति वृद्धेभ्य आगमः' । -वा० ५० ३।७।१६४ पूर्वार्द्ध क्रिया की आकांक्षा होने पर भी उस पदार्थ की सम्बोध्यता का ज्ञान हमें दूसरे पदों से निरपेक्ष रूप में ही होता है। यही कारण है कि उसे पदार्थ कहा जाता है। किन्तु यह पदार्थ प्रातिपदिकार्थ से कुछ अधिक है, क्योंकि इसमें सत्ता के अतिरिक्त उसकी सम्बोध्यता ( क्रियानियोग के उद्देश्य से अभिमुखीकरण ) का भी बोध होता है। कर्मादि में जिस प्रकार क्रिया की अपेक्षा रखते हुए ही साधन-भाव का ज्ञान होता है और इसीलिए क्रिया का आश्रय लिया जाता है, किन्तु इससे उनकी वाक्यार्थता नहीं प्रकट होती ( कर्मादि भी पदार्थ है, वाक्यार्थ नहीं; क्योंकि वाक्यार्थ क्रियामात्र है )-यही दशा सम्बोधन की भी है । हाँ, यह बात अवश्य है कि गम्यमान क्रिया के आधार पर एक पद भी वाक्य हो सकता है; यथा-वृक्षः ( अस्ति )। इस रूप में सम्बोधन को भी वाक्य कहा जा सकता है; यथा-हे राम । यहाँ 'अभिमुखो भव, शृणु' इत्यादि रूप में यथा-प्रकरण क्रियावगति होती है । ____सम्बोधन की दो गतियाँ हैं। पहली यह कि प्रकृत्यर्थ के प्रति यह विशेष्य होता है । अतः 'हे राम' में राम-सम्बन्धी सम्बोधन का बोध होता है, जिसमें प्रकृत्यर्थ राम विशेषण है और सम्वोधन विशेष्य । किन्तु दूसरी ओर क्रिया के प्रति यही १. हेलाराज-वा० ५० ३।७।६३ पर।
SR No.023031
Book TitleSanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Surbharti Prakashan
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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