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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि 4. भू धातु के रूप में भ की सुरक्षा (हेम० 4/266-269) भोदि, भवति, भुवदि आदि। 5. पूर्वकालिक क्रिया में संस्कृत ‘क्त्वा' प्रत्यय के स्थान पर इय, दूण, उडुअ आदि लगते हैं (हेम० 4/271-272); यथा पढ़िया, पढ़ि दूण (पठ्), कडुअ-कृ और-गम् । 6. भविष्यत्काल में 'रिस' विभक्ति, हि स्स, या ह (हेम० 275)। 7. कर्मवाच्य के अन्त में ईअ जोड़ा जाता है। ___ इस तरह शौरसेनी भाषा धातु और और शब्द रूपावली तथा शब्द सम्पत्ति में संस्कृत के बहुत निकट है और महाराष्ट्री प्राकृत से बहुत दूर जा पड़ी है। इन सारी बातों का पता वररुचि के वैयाकरण से स्पष्टतया विदित होता है। इस तरह हम देखते हैं कि शौरसेनी के विकास रुक जाने पर वैयाकरणों ने इन नियमों को शौरसेनी का प्रधान लक्षण स्वीकार कर लिया। शौरसेनी ही नहीं महाराष्ट्री भी व्याकरण के नियमों से आबद्ध हो उठी। श्री ए० एम० घटगे ने शौरसेनी प्राकृत29 नामक शीर्षक तथा डा० ए० एन० उपाध्ये ने पैशाची लैंग्वेज एण्ड लिटरेचर२० नामक शीर्षक में इन बातों पर विशद रूप से चित्रण किया है। मागधी की मुख्य विशेषताएँ मागधी मगध जनपद (बिहार) की भाषा थी। शौरसेनी, महाराष्ट्री और अर्धमागधी की भाँति इस प्राकृत में कोई अधिक साहित्य नहीं पाया जाता। इसका सबसे पुराना रूप अशोक के शिलालेखों में देखा जा सकता है। इसके बाद अश्वघोष, भास, कालिदास और शूद्रक के मृच्छकटिकम् नाटक में कुछ पात्रगण इसी बोली में बोलते हैं; जैसे-कंचुकी, भिक्षु, क्षपणक, चेट आदि। (यह काल 100 या 200 ई० से 500 ई० तक का काल माना जाता है) शाकारी, चाण्डाली और शावरी आदि इसकी उपबोलियाँ हैं । भरत के अनुसार,
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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