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________________ प्राकृत पर भी विचार किया है। अतः क्रम से इन्हीं प्राकृतों की विशिष्टताओं का उल्लेख करेगे। प्राकृत या महाराष्ट्री महाराष्ट्री को ही सभी वैयाकरणों ने प्रमुख प्राकृत माना है। हेमचन्द्र और दण्डी ने प्राकृत का अर्थ महाराष्ट्री ही लिया महाराष्ट्राश्रयां भाषां प्रकृष्टं प्राकृतं विदुः। सागरः सूक्ति रत्नानां सेतुबन्धादि यन्मयम्।। इसी के आधार पर डा० भंडारकर महाराष्ट्री को महाराष्ट्र देश से सम्बन्धित मानते हैं। उन्होंने सेतुबन्ध, गाथासप्तशती, गौडवध काव्य आदि पर आधारित महाराष्ट्री को शौरसेनी से भिन्न माना है। श्री पिशेल ने गोरेज के विचार से सहमत होते हुए, तथा जूल ब्लॉक ने भी महाराष्ट्री को मराठी भाषा का पूर्वज माना है। किन्तु डा० मनमोहन घोष ने अपने महाराष्ट्री शौरसेनी का परवर्ती रूप० नामक शीर्षक निबन्ध में कई प्रकार के प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि महाराष्ट्री प्राकृत वस्तुत: जनपदीय भाषा नहीं थी। इसका सम्बन्ध महाराष्ट्र प्रान्त से नहीं जोड़ा जा सकता। यह मध्य देश की शौरसेनी प्राकृत का परवर्ती रूप है। यह एक समय सम्पूर्ण उत्तर भारत में प्रचलित होने के कारण महाराष्ट्री (महान राष्ट्र की भाषा या आजकल के शब्दों में राष्ट्रभाषा) कहलाई और इसी कारण दण्डी ने महाराष्ट्री प्राकृत को 'महाराष्ट्राश्रित' यानी श्रेष्ठ प्राकृत कहकर पुकारा है। भरत के नाट्यशास्त्र में महाराष्ट्री प्राकृत का उल्लेख नहीं है। अश्वघोष और भरत के नाटकों में भी महाराष्ट्री के प्रयोग देखने में नहीं आते। वररुचि ने प्राकृत प्रकाश में शौरसेनी के लक्षण बताने के पश्चात् शेषं महाराष्ट्रीवत् (12/32) लिखकर महाराष्ट्री को मुख्य प्राकृत माना है। किन्तु इस पर भामह की टीका न होने के कारण यह प्रामाणिक
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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