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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि अच्छी तरह से स्पष्ट किया है। पाणिनि की अष्टाध्यायी ने वैदिक और लौकिक संस्कृत का स्पष्ट भेद दिखाया है। वैदिक शब्दों का अर्थ लौकिक संस्कृत में स्पष्टतया परिवर्तित हो गया है। जैसा कि 'कवि' शब्द के अर्थ की व्याख्या सायण और यास्क ने की है। यह सामान्यतया वेद में-वह जो कि वस्तुओं की प्रकृति को जानता हो का अर्थ व्यक्त करता था (अग्निर्होता कवि क्रत:-ऋग्वेद 1/1/1) बाद में यह शब्द कविता रचने वाले को कहा गया। यही 'कवि' शब्द पूर्वकालीन उपनिषदों में कृषक के भाव में ही व्यक्त हुआ है-दुर्गम् पथस्तत् कवयो वदन्ति-(कठो० 2/4/14)। 'मृग' शब्द वेद में सामान्य जानवरों के लिए प्रयुक्त होता था बाद में यह खास हिरण जानवर के लिए प्रयुक्त होने लगा-मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठा:-ऋग्वेद-x 180। संस्कृत जनभाषा थी या नहीं किन्तु एक विवादास्पद विषय रह ही जाता है कि क्या संस्कृत जनता की भाषा थी अथवा यह सामान्य साहित्यिक भाषा ही थी जिसमें कि हिन्दुओं की पवित्र रचनायें रची गयीं। अधिकांश पाश्चात्य आलोचक इस बात से कभी भी सहमत नहीं होते कि संस्कृत कभी भी विस्तृत पैमाने पर जनता की भाषा रही हो। उन लोगों का कहना है कि ऐसी भाषा जो कि सख्त व्याकरण के नियमों और ध्वनियों से जकड़ दी गई हो वह सर्वसाधारण जनता के द्वारा बोलने के व्यवहार में कैसे लायी जा सकती है। उन लोगों का कहना है कि यह बहुत अधिक संभावना है कि संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत ही सर्वसाधारण जनता के व्यवहार की भाषा रही हो। समाज की अशिक्षित जनता जिनकी कि समाज में अधिकता होती है, संस्कृत उनकी मातृभाषा नहीं हो सकती क्योंकि संस्कृत शब्दों का शुद्ध उच्चारण बिना व्याकरण के ज्ञान अथवा अच्छी शिक्षा के बिना सामान्य जनता इसे ठीक तरह से नहीं बोल सकती। अगर संस्कृत जनभाषा थी भी तो वह सुशिक्षित लोगों की भाषा थी। निस्सन्देह संस्कृत के समृद्धि काल में यह जनभाषा थी। यद्यपि
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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