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________________ धातु साधित संज्ञा 421 4/343 4/345 4/347 4/349 आणहि " वण्णिअइ तद्भव देक्खु " दारन्तु " पयट्टइ पडिपेक्खइ " देक्खइ जाइ . माइ तत्सम फोडेन्ति तद्भव रक्खेज्हु (जइ) तद्भव 4/350 ... . . . . . . EEEEE. .. . . . EEE. आण लाना लोट वण्ण वर्णन करना लट् देख देखना लोट दार फाड़ना " पयट घसना लट पङि+पेक्ख देखना देख देखना " जा जाना " मा समा जाना " फोड़ फोड़ना " रक्ष/रक्ख रक्षा लोट से करना इण-गतौ जाना मह चाहना लट् गण गिनना लोट् उम्मील खोलना लट् पयास प्रकाश करना " फुट्ट फूटना देख देखना स्थाप/ठाव रखना " रुस-रूसनारूठना गण गिनना तिष्ठ/चिट्ठ बैठना नि+वह लट् 4/351 4/353 तत्सम तत्सम 4/354 4/357 एन्तु महन्ति गणन्ति उम्मिलइ पयासइ फुट्टि देक्खउँ ठवइ रूसइ तद्भव " " " 4/358 तत्सम गणइ तत्सम चिट्ठदि तद्भव 4/360 4/360 निव्वहइ
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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