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________________ 416 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि ये प्रत्यय संस्कृत तुम् (उन्) हिन्दी (करने जाने के लिये) के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। अन्त में 'अन' वाली संज्ञा के साथ अणहँ लगने से उसका रूप संबंध ब० व० का बन जाता है। अणहि लगने से अधिकरण ए० व० हो जाता है या करण ब० व० बनता है। इस प्रकार ऍच्छण < एष्टुम् है जो इष् से बना है (=चाहना, हेम० 4/353); करण < कर्तुम् (हेम० 4/441,1); यह 'क' प्रत्यय के साथ भी आया है जो अक्खाणउँ < आख्यातुम् में पाया जाता है यह वास्तव में आख्यानम् (हेम० 4/350,1); भुज्जाणहँ और भुञ्जणहिँ (हेम० 4/441,1); तथा लुहणं भी पाया जाता है (क्रम० 5/55); देवं < दातुम् में समाप्तिसूचक चिह एवं देखा जाता है (हेम० 4/441,1); अप० का देवं वैदिक दावने का समरूपी हो सकता है। तु वाली एक सामान्य क्रिया भज्जिउ है (हेम० 4/395,5); जो भञ्ज् के कर्मवाच्य के वर्ग से कर्तृवाच्य के अर्थ में बनाया जाता है। भंजिउ भज्जिउ (हेम० 4/439) सामान्य क्रिया का रूप कृदन्त के अर्थ में काम में लाया जाता है। क्रम० 5/55 लहउं < लब्धं संस्कृत तुम प्रत्यय के अर्थ में 'अणअ' प्रत्यय भी होता है। अ को उ होकर (हेम० 4/443) मारणउ मारने वाला, बोलणउ बोलने के लिये, वज्जणउ, सुणउ इत्यादि। न० भा० आ० भाषाओं में ण प्रत्यय का विकास हम देख सकते हैं जैसे-हिन्दी-करना, मारवाड़ी-'करणो' मराठी-'करणे' आदि में सामान्य कृदन्त का रूप देखा जा सकता है। शब्द सिद्धि कृत्-प्रत्यय क्रिया में कृदन्त प्रत्यय लगने से नाम (संज्ञा). विशेषण हो जाता है। कृदन्त प्रत्यय धातु के अन्त में लगता है। अतः उसके कुछ उदाहरण दिये जाते हैं
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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