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________________ 402 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि हुआ है-एइ (हेम० 4/406), इण (गतौ) धातु का वर्तमान काल में एइ < एति रूप होगा। चरण के अन्त में देइ < ददाति रूप भी होता है। देन्ति, एसी, एइ प्रयोग प्रेरणार्थक नहीं है। ये रूप अपवाद स्वरूप हैं। अणुणेइ < अनुनयति प्रेरणार्थक है। भम < भ्रम धातु के प्रेरणार्थक रूपों में भामेइ और भमावइ के साथ-साथ हेमचन्द्र (3/151) के अनुसार भामावेइ रूप भी चलता है। हेम० (4/30) के अनुसार भमाडइ और भमाडेइ रूप भी मिलते हैं। हेम० (4/161)-भम्मडइ, भमडइ और भम्माडइ रूप भी मिलते हैं | आड वाले रूप पुरानी राजस्थानी में भी पाये जाते हैं-ऊडाडइ (दश० 10)=उड़ाता है। जगाडइ (दश०)=जगाता है। पमाडइ (दश०) दिलाता परवर्ती अपभ्रंश संदेश रासक और प्राकृत पैंगलम् में प्रेरणार्थक °आव और अव के रूप अधिक मिलते हैं। अपवाद स्वरूप सारसि (स्मारयसि) जैसे रूप भी मिल जाया करते हैं। नामधातु नामधातु संस्कृत की भाँति बनाये जाते हैं। इनमें या तो क्रियाओं के समाप्ति सूचक चिह (1) सीधे नामों यानी संज्ञाओं में जोड़ दिये जाते हैं। (2) अन्त में अ=संस्कृत-य वाली संज्ञाओं में इस अन्तिम स्वर का दीर्धीकरण कर दिया जाता है या (3) क्रियाओं के समाप्तिसूचक चिह प्राकृत के प्रेरणार्थक के चिह्न ए-वे-और-व-में लगाये जाते हैं। पच्चप्पिणाहि और पच्चप्पिणित्ता रूप; जम्मइ <* जन्मति तथा हम्मइ <* हन्मति; धवलइ (हेम० 4/24); पडिबिम्बि (हेम० 4/439,3); पमाणहु < प्रमाणयत; पहुप्पइ <* प्रभुत्वति; शुष्कसे सुक्कहिँ रूप (हेम० 4/427,1) पाया जाता है। संस्कृत में बिना किसी प्रकार का उपसर्ग जोड़कर संज्ञा शब्दों से क्रियायें बना दी जाती हैं जैसे अंकुर से अंकुरति, कृष्ण से कृष्णति, और दर्पण से दर्पणति (कील हौर्न 8476; हिटनी $1054)। पिशेल (8491) का कहना है महा० और अप० में इस प्रकार के नाम धातु की प्रक्रिया विशेष पाई जाती है। कथा < कहा से
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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