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________________ भारतीय आर्य-भाषा 13 भाष्यकार ने संस्कृत शब्द का प्रयोग कहीं नहीं किया है। यास्क ने एकाध जगह संस्कृत शब्द का प्रयोग किया है (निरुक्त 1/12)। इससे पता चलता है कि संस्कृत का काम पवित्रता या व्याकरणिक विश्लेषण था जिसने पुरानी भाषा को आदरणीय संस्कृत-पवित्र के अर्थ में परिवर्तित कर दिया। वस्तुतः भाषा का संस्कार (संस्कृत) यास्क से बहुत पहले हो चुका था। यास्क का समय पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। पाणिनि ने सर्वत्र भाषा शब्द का प्रयोग किया है। भाषा के लिए संस्कृत शब्द का प्रयोग रामायण में पाया जाता है। प्रतीत होता है कि इस समय तक आर्यों की प्रादेशिक भाषाएँ अधिक सुसमृद्ध होती जा रही थीं, उससे भिन्नता दिखाने के लिए संस्कृत नामकरण किया गया हो। इस पुरानी भाषा के पवित्रीकरण का कारण यह भी हो सकता है कि निम्न वर्ग के लोगों की भाषाओं का स्वच्छन्दतापूर्वक घोल-मेल न हो सके। भाषा की पवित्रता सुरक्षित रहे। यह बहुत संभव था कि अनार्यों के बहुत से शब्द तथा प्रादेशिक भाषाओं के बहुत से शब्दरूप इसमें घुल-मिल रहे थे। अतः रूढ़िवादी वैयाकरणों ने पुराहितों की पवित्रता को सुरक्षित बनाए रखने के लिए और दोषों से मुक्त रखने के लिए भाषा का संस्कार यानी संस्कृत किया ।' पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण का रूप हमेशा के लिए निश्चित कर दिया । इसका व्याकरण बँध जरूर गया। फिर भी इसमें विकासशीलता थी। इसका प्रमाण समय के अनुसार बदलता हुआ इसका वाक्य विन्यास है। पाणिनि के समय में लौकिक या प्रचलित संस्कृत का भारतीय-आर्य प्रादेशिक बोलियों में संभवतः वही स्थान रहा होगा, जो आधुनिक काल में हिन्दी का है। सर्वत्र साधारण जनता संस्कृत समझ लेती थी, भले ही वह पूरब भारत क्यों न रहा हो-जहाँ से प्राकृत उद्भूत हुई थी। पुराने संस्कृत नाटकों से भी इसी बात की पुष्टि होती है। उच्च वर्ग के पात्र संस्कृत में और निम्न वर्ग तथा स्त्री पात्र प्राकृत में बोलता था। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्राकृत के विकास काल के समय में भी सामान्यतया संस्कृत व्यवहार की भाषा थी।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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