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________________ क्रियापद 389 न० भा० आ० से भी इसका सम्बन्ध बढ़ गया। राजस्थानी और व्रज भाषा में अ, इ,-एँ, इँ-अप० अहि, एहि का ही विकास है। मरा०-ओ, ओरिया-उ, बंगाली उक आदि। इस प्रकार ब्लॉक ने म० भा० आ० से न० भा० आ० का आज्ञा वाचक सम्बन्ध दिखाया है। अपभ्रंश के रूप इन दोनों के बीच को जोड़ने वाली सम्बन्धात्मक कड़ी है। भविष्यत्काल पुरुष एकवचन बहुवचन उत्तम पु० करेसमि, करिसु, करीहिमि। करेसहुँ मध्यम पु० करेसहि, करेससि, करीहिसि करेसहु, करेसहो अन्य पु० करेसइ, करेहिइ करेसहिं, करेहिन्ति प्रो० भयाणी ने अपने अपभ्रश व्याकरण में भविष्यत्काल के दो भेद किये हैं। 1. निर्देशार्थ भविष्य 2. आज्ञार्थ भविष्य । 1. निर्देशार्थ भविष्य-भविष्य-अंग +(संयोजक स्वर) + प्रत्यय भविष्य रूप। उत्तम पुरूष ए० व० के रूप में संयोजक स्वर नहीं होता। मध्य पु० ए० व० में कहीं 'इ' संयोजक स्वर होता है। प्रत्यय रूप i. उत्तम पु० ए० व० उ (ईस् लगता है) करीसु, पइसीसु, पावीसु, कुड्डीसु (कर्मणि) खलिकीसु (कहीं-कहीं एस् भी लगता है)-रूसेसु (इस्)-फुट्टिसु; iii. अन्य पु० ए० व० ई (एस् प्रत्यय) :- सहेसइ, (रूप साधक ईस्) चुण्णीहोइसइ (रूपसाधक स्) होसइ; (संयोजक इ)-एसी; (रूपसाधक-'इह' संयोजक 'इ')-होहिइ।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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