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________________ 336 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि षड्भाषा चन्द्रिका में कृदन्त के कुछ प्रत्ययों को भी अव्यय प्रकरण के पाठ में रखा गया है। पूर्वकालिक क्रिया के बोधक ‘क्त्वा' प्रत्यय के स्थान पर होनेवाले आदेश °इ, इउ, एवं ए, 'अवि' तथा 'एप्पि' एप्पिणु, एपि, एपिणु इत्यादि। इसी प्रकार तुमुन प्रत्यय के स्थान पर एवं, अण, अणहं, अणहिं तथा एप्पि, एप्पिणु, एपि, एपिणु आदि । संस्कृत में भी क्त्वा प्रत्यय अव्यय होता था-क्त्वातोसुन्कसुन:-अष्टाध्यायी 1/1/39| कृदन्त के सभी प्रत्यय जिनका कि रूप नहीं चलता था उनकी अव्यय संज्ञा होती थी। अपभ्रंश में भी सिद्धराज ने क्त्वा एवं तुमुन् को अव्यय में पढ़ा । पाणिनि ने तो तद्धित के उन प्रत्ययों की भी अव्यय संज्ञा की है जिनका कि रूप नहीं चलता। इस दृष्टि से विचार करने पर अपभ्रंश के तद्धित प्रत्यय भी अव्यय के भागी होंगे। 8/4/425 तादर्थ्य में प्रयुक्त निपात केहि; तेहिं, रेसि, रेसिं एवं तणेण आदि अव्यय होते हैं अर्थात् इन निपातों में रूप विकार नहीं होता। हउँ झिज्जउं तउ केहिं पिय तुहुँ पुणु अन्नहिं रेसि 'बड्डुत्तणहो तणेण' । सिद्धराज ने उदाहरण दिया है-रामकेहिं, रामतेहिं, रामतेसि, रामतेसिं, तथा रामतणेण । ये सभी प्रत्यय युक्त रूप 'राम के लिये' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। 8/4/426 स्वार्थ में विहित पुनः तथा विना शब्द के आगे डु प्रत्यय होता है। न को ण होकर पुणु एवं विणु रूप होगा। 8/4/444 संस्कृत में इव शब्द उपमा के अर्थ में तथा निश्चय के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। उसी अर्थ में अपभ्रंश में न, नउ, नाइ, नावइ, जाणि एवं जणु आदेश होता है='नं मल्ल जुज्झु ससि-राहु करहिं' 'नउ जीवग्गलु दिण्णु'-संस्कृत-ननु जीवार्गल दन्तः। गवे सइनाइ-संस्कृत में गवेषतीव। नावइ गुरु मच्छर भरिउ-संस्कृत में ननु गुरुमत्सरभरितं । सोहइ इन्दनील जणु', संस्कृत में 'शोभते इन्द्र नीलः ननु' इत्यादि । उपर्युक्त अव्ययों का निर्देश हेमचन्द्र ने अपभ्रंश सूत्रों में किया है जो कि दोहों में पाये जाते हैं। इन अव्ययों के अतिरिक्त कुछ और
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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