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________________ 296 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि नहीं पर-केरी रे आस = दूसरे की आशा नहीं है __ (एफ० 722,4) त्रिभुवन-केरा नाथ = त्रिभुवन के नाथ (ऋष० 158) अवधी में केरअ का विविध रूपान्तर पाया जाता है :(1) कोउ काहू कर नाहिं निआना। (पद्मावत) राम ते अधिक राम कर दासा। (मानस) (2) कै < कइ < करि < कर:परै रकत कै आँसु (पद्मा०) पलुही नागमती कै बारी। (पद्मा०) जहि पर राम के होई (मानस) (3) क < कर :धनपति उहै जेहि संसारू। (पद्मा०) पितु आयसु सब धरम क टीका (मानस) खड़ी बोली में इन्हीं सब के स्थान पर का, के, की रूप प्रचलित है। इसी का रूपान्तर ब्रजभाषा में कौ, का रूप अधिक प्रचलित है। अतः इस केरए का विकास क्रमशः इस प्रकार मानना चाहिये। केरए > केरअ > केर > कर > करि > कइ > कै इत्यादि। कुछ विद्वानों ने केर से केरए आदेश होने के कारण इनकी व्युत्पत्ति एकृ धातु से मानी है डॉ० चटर्जी+7 एवं डॉ० भयाणी48 ने केर करि का विकास संस्कृत कार्य से माना है। (6) अधिकरण परसर्ग-मज्झे, मज्झि आदि अधिकरण परसर्ग मज्झे, मज्झि आदि। "जामहि बिसमी कज्ज-गइ, जीवहँ मज्झे एइ" (हे० 8/4/406) सं० यावत् विसमा गतिः जीवानां मध्ये आयाति, चम्पय कुसुमहो मज्झि (हे0 8/4/439) सं० चम्पक सुसुमस्य मध्ये इन उदाहरणों से पता चलता है कि मज्झे,
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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