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________________ 272 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि व्यवस्था है किन्तु लिंग विधान की कड़ाई उस प्रकार नहीं है जैसी कि प्राचीन भारतीय आर्य भाषा में थी। नियम की कड़ाई के ढीला हो जाने के कारण हेमचन्द्र ने अपभ्रंश में लिंग को अतन्त्र बताया (8/4/445) पुल्लिंग का नपुंसक लिंग-गंय कुभई < गजकुंभान हो गया। ___अब्मा लग्गा डुंगरिहिं, पहिउ रडन्तउ जाइं में नपुंसक अब्मा का प्रयोग पुल्लिंग में हुआ है। णाइ विलग्गी अन्त्रडी सिरुल्हसिउं खन्धस्सु दोहे में नपुंसक अन्त्र शब्द का स्त्री० में डी प्रत्यय हुआ है। इसी प्रकार सिरि चडिआखन्तिफ्फलइंपुणुडालइ मोडन्ति में स्त्रीलिंग वाचक डाल शब्द का नपुं० में इं विभिक्ति हुई है। ___ पिशेल' का कहना है कि अपभ्रंश में अन्य प्राकृत बोलियों की अपेक्षा लिंग निर्णय अत्यधिक डांवाडोल है जैसा कि हेमचन्द्र ने स्वतः कहा भी है। किन्तु यह सर्वत्र पूर्ण अनियमित नहीं है। पद्य में छन्द की मात्राएँ और तुक का मेल खाना लिंग का निर्णय करता है-"जो पाहसि सो लेहि" < यत् प्रार्थयसे तत् लभस्व, मत्ताइं < मात्रा, णिच्चिन्त हरणाइँ < निश्चिन्ताः हरिणाः, अम्हाइं, अम्हे < अस्मे है। वचन प्रायः सभी भाषाओं में एक वचन तथा बहुवचन का ही प्रयोग है, पर प्राचीन भारतीय आर्य भाषा में तीन वचन थे। एक वचन, द्विवचन और बहुवचन। द्विवचन का आविर्भाव किन्हीं वस्तुओं को समान और साथ-साथ देखने से हुआ होगा जैसे दो हाथ, दो पैर, दो आँख आदि। धीरे-धीरे निरन्तर साथ रहने वालों पर भिन्न वस्तुओं अथवा जीवों के लिये भी इस वचन का प्रयोग होने लगा होगा। पाणिनि कालीन संस्कृत में द्विवचन रूढ़ होकर एक वचन तथा बहुवचन की भाँति महत्वदायक हो गया। वैदिक संस्कृत में द्विवचन का उतना महत्व नहीं था। मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं के आरम्भ होते ही द्विवचन का महत्व समाप्त हो गया। लोप होने का कारण यही हो सकता है कि उसकी स्वतन्त्र सत्ता अस्वीकृत हो गयी। पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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