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________________ ध्वनि-विचार 263 त् + म = प्प-अप्पण < आत्मन्, अप्पर अत्त, अज्झप्प < अध्यात्मन् किन्तु ज् + ञ = ण्ण-आण < अण्णा < आज्ञा, साण < संज्ञा, जाण < ज्ञान, जण्ण < यज्ञ (आ) सामान्य व्यंजन + अन्तस्थ-सामान्य व्यंजन का द्वित्व हो जाता है : क + य = क्क-चाणक्क < चाणक्य, वक्क < वाक्य, पारक्क < पारक्य, शक्क < शक्य, ख + य = क्ख-अम्खाणअ < आख्यानक < सो क्ख < सौख्य। ग् + य = ग्ग-जोग्ग < योग्य, वेरग्ग < वैराग्य, सोहग्ग < सौभाग्य, च् + य = च्च-मुच्चइ < मुच्यते, वुच्चइ, वुच्चति < उच्यते । ज् + य = ज्ज-जुज्ज्यते < युज्यते, भुज्जन्त < भुज्यमान। ट् + य = दृ-टुट्टयति < त्रुट्यति, लोट्टइ < लुट्यति । ड् + य = डु-कुड्डु < कुड्य । प् + य = कुप्पइ < कुप्यति, सुप्पउ < सुप्यताम् । प् + ल = प्प-विप्पव < विप्लव प् + र = प्प-विप्पिय अरउ < विप्रिय कारक: क + र = क्क-चक्क < चक्र, व् + य = व्व-कव्व < काव्य क् + व = क्क-पिक्क < पिक्व क + त =- क्क-सक्को < शक्तः सत्तो रूप भी होता है। मोक्कलडेण < मुक्त हस्तेन । अपवाद-द् + व = व्व-उविग्ग < उद्विग्न, उव्वरिय < उद्धृत। 15051
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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