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________________ ध्वनि-विचार 255 वर्ण प्रक्षेप (मध्य वर्णागम) शब्द के मध्य में स्वर की भाँति व्यंजन आगम की भी प्रवृत्ति पायी जाती है : (अ) दः न्नल > न्नर > न्दल > न्दर-बिहन्दल < बृहन्नला, हिन्दी बन्दर < वानर, पन्दरह < पन्नरह आदि। किन्तु अपभ्रंश में ऐसी प्रवृति बहुत ही कम है। बः म्र > म्ब > म्बिर (सि० हे0 8/2/56) तम्बिर < ताम्र, तंब < ताम्र, अंब < आम्र। ___ (आ) अपभ्रंश में यद्यपि शब्द के आदि में संयुक्त व्यंजन की प्रवृत्ति समाप्त हो गयी थी फिर भी कुछ स्थलों पर आदि व्यंजन से संपृक्त र की प्रवृत्ति पायी जाती है। हेमचन्द्र ने अपने अपभ्रंश सूत्र (8/4/398) में विकल्प से रेफ लोप का वर्णन किया है तथा 8/4/399 में र के रहने का वर्णन किया है। इससे प्रतीत होता है कि अपभ्रंश पर किसी देशी भाषा का विशेष प्रभाव था। यह रेफ की प्रवृत्ति हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में ही विशेष रूप से पायी जाती है। ___ ब्रासु < व्यास, देहि < दृष्टि, प्रस्सदि < पश्यति, हे0 8/4/391 ब्रूगः, ब्रोधि। कभी-कभी संयुक्त र ऋ में परिणत हो जाता था 8/4/394 गृहणेप्पिणु < ग्रहीत्वा । संभवत: यह प्रवृत्ति भाषा में संस्कृत की उदात्तता लाने के प्रयत्न स्वरूप चल पड़ी होगी। इस तरह हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में व्यंजन से र को संयुक्त करने की प्रवृत्ति बहुत स्थलों पर पायी जाती है। अंत्र, द्रम्म, द्रवक्क, द्रह, देहि, ध्रुव, प्रंगण, प्रमाणिए, प्रयावदी, प्रस्स, प्राइव, प्राइम्व, प्राउ, प्रिय, ब्रुव, ब्रो, भ्रंति, भंत्रि व्रत, तुध्र, त्रं, धं, भ्रंत्रि, इत्यादि उपर्युक्त उदाहरणों से प्रतीत होता है कि अपभ्रंश पर प्रादेशिक बोलियों का तथा प्राचीन आर्य भाषा का प्रभाव प्रचुर मात्रा में था। (इ) हः धूहडु < धूअ + ड स्वार्थे क < धूक, ठाहरइ < स्था अइ * _हडी < भूमि (सि० हे० 8/4/395) चिहुर < चिकुर ।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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