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________________ 248 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि अपभ्रंश में स को ह होता है-हे0 8/4/333-दियहडा < दिवसाः। य को ज=कहीजइ < कहिज्जइ < कथ्यते, सुमिरिज्जइ < स्मयर्ते, भमिज्जइ < भ्रम्यते, वाणिज्जइ < वाणिज्यकः । न को ण-णवि < नापि, णट्ठउ < नष्टकः, णिअत्तएं < निमित्तकेन। त को प-हे० 8/4/437-वड्डुप्पणु < वडत्वं, अप्पण < आत्मन्। त को ड भी होता है हे0 8/4/439 पडिविम्विउ < प्रतिबिम्बितः । पडिहाउ < प्रतिभाति __ हे० 8/4/441 निवडण भयेण < निपतन भयेन हे० 8/4/444 पाडिउ < पातितः हे० 8/4/420 कभी कभी त को ण भी होता था-हे0 8/4/333 दिण्णा < दत्ता । त को द। शौरसेनी के प्रभाव रहने पर त को ज भी हो जाता है। साहित्यिक अपभ्रंश ने सामान्यतः महाराष्ट्री प्राकृत का ही अनुसरण किया है। कधिदु < कथितः हे० 8/4/396 आगदो < आगतः हे0 8/4/455-372 करदि, चिट्ठदि हे० 8/4/360 हेमचन्द्र के अपभ्रशं में जो उदाहरण दिये गये हैं वे प्रायः शौरसेनी से प्रभावित हैं जो कि उस समय की अपभ्रशं बोली में प्रयुक्त होता था। उसके प्रयोग होने का कारण यह है कि वे दोहे लोक में बहुत प्रचलित थे। इसीलिये उसका उदाहरण हेमचन्द्र ने दिया है। श्री चिमन लाल मोदी का कहना है कि ख = घ, थ = ध, प = ब, फ = भ वाला उद्धरण हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों के उद्धरण के अलावा अन्यत्र मिलना कठिन है।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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