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________________ ध्वनि-विचार 237 उपधा स्वर (Penultimate Vowels) की सुरक्षा अपभ्रंश में उपधा स्वर को सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति पायी जाती है। गोरोअण < गोरोचन, खवणउ < क्षपणकः, अन्धआर < अन्धकार, भुअंगम < भुजंगम, पयदण < प्राक्तन इत्यादि। कहीं कहीं उपधा स्वर में मात्रा परिवर्तन भी हो जाता है। जैसे-मियंक < मृगांक, रहंग < रथांग, पाहण < पाषाण, वह्मचार < ब्रह्मचर्य, गुहिर < गभीर, सरुव < स्वरूप। संस्कृत उपधा स्वर इ अपभ्रंश में भी सुरक्षित रहा है-ललिय < ललित, विवज्जिउ < विवर्जितः, पुन्दरिय < पुन्दरिक, अम्मत्तिय < उन्मत्तिका, कव्वाडिय < * कपातिका। इ की भाँति संस्कृत उ की भी सुरक्षा हुई है-समुद्द < समुद्र, ल्हसुण < लसुणी, सरुव < स्वरूप, भिउदी < भृकुटि, समुह < सम्मुख, उसुय < उत्सुक, कपूर < कर्पूर। कहीं-कहीं अन्त्यक्षर में व्यंजन ध्वनि के लोप हो जाने पर उपधा और अन्त्य स्वर का संकोच भी हो जाता है। यह प्रवृत्ति अधिकतर पूर्वी अपभ्रंश में पायी जाती है, पर इसके कुछ उदाहरण पश्चिमी अपभ्रंश में भी पाये जाते हैं। पूर्वी अपभ्रंश-मट्टी < * मट्टिआ < मृत्तिका, इन्दि < इन्दिय < इन्द्रिय, पश्चिमी अपभ्रंश-खेत्ती < खेत्तिआ < क्षेत्रिता (हिन्दी खेती), पराई < परकीया, पोट्टलि < पोट्टलिका, चौरासी < चतुरशीति, पुत्थ एवं पोत्था < पुस्तक इत्यादि कुछ उदाहरण मिलते हैं। डा० तगारे का कहना है कि स्वर परिवर्तन के कुछ ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जिनमें कि संभवतः स्वराघात के अभाव अथवा समीकरण या विषमीकरण के कारण भी उपधा स्वर में गुणात्मक परिवर्तन हो जाता है : खयर < खदिर, मज्झिम < मध्यम । प्राकृत व्याकरण के अनुसार अ का इ में परिवर्तन हो जाता है-हे०-इः स्वप्नादौ 8/1/46 सिविणो < सिमिणो, कहीं कहीं उ भी हो जाता है-सुमिणो, उत्तिम < उत्तम ।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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