SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 228 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि अन्तिम-अम् या तो समाप्त हो जाता है या उ हो जाता है-नर, नरू < नरं < नरम्, वर, वरु < वरम्। इसी तरह अन्तिम अः का विसर्ग या तो समाप्त हो जाता है या उ (<-०) हो जाता है-नर, नरु < नरः, पिअ, पिउ, < प्रियः । पुल्लिंग और स्त्रीलिंग का भेद बताने का रूप स्पष्ट है-जुवइह (षष्ठी ए० व० का युवति), माअह (षष्ठी ए० व० मातृ)। नवीन सर्वनाम के रूप इस तरह हैं-एह (यह), जेह (वह क्या), केह (क्या) तीनों लिंगों में होता है। इमु < इदम्; केमु, किव = कथम्; जिम, तिम = यादृक, तादृक; मइ (म्), तइ (म्), अम्ह, तुम्ह = हम, तुम (एक वचन में भी प्रयुक्त होता है) अम्हार, तुम्हार=अस्मदीय-(मदीय-), युष्मदीय (त्वदीय-) आदि। क्रिया रूपों में निम्नलिखित प्रत्यय होते हैं। (लोट् और विधि में भी) (i) उत्तम पुरूष-ए० व०-हुं, मि, ब० वo-म (ii) मध्यम पु०-ए० व०-इ, उ,-हि०, ब० व०-ह; (iii) अन्य पु० ए० व० – (अ) इ-अ, ब० व० न्ति,-हि। संज्ञा और क्रिया के लिए मुहावरे भी प्रयुक्त होते हैं। क्रिया और संज्ञा के नये रूपों के शब्द समूह स्पष्ट हो जाते हैं-वट (वद) मूर्ख, कल्ल (कल्ली) = कल, खोज्ज-खोज, काल (बहिर), वुड-डूबना, वड्ड-बड़ा, आदि। संदर्भ . 1. प्राकृत व्याकरण-845
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy