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________________ 222 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि और मध्यम० के रूप बता चुके हैं। उ० पु० ए० व० अहम, ब० व० अम्ह, म० पु० ए० व०-तु, त, प; और तुम्ह म० पु० ब० व० के रूप हैं। दोनों पुरुषों के रूप प्रायः पुल्लिंग और नपुंसक लिंग में एक ही हैं। अपभ्रंश साहित्य में पूर्वोक्त बहुत से रूप नहीं दीख पड़ते हैं तथापि प्राकृत वैयाकरणों ने उन रूपों का निर्देश किया है। फिर भी इन रूपों में सर्वत्र स्थिरता पाई जाती है। इन रूपों से यह विदित होता है कि ये रूप न० भा० आ० भाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन रूपों के अतिरिक्त अन्य पुरूष के रूप हैं जो कि सर्वनाम विशेषण के रूप में भी प्रचलित हैं; जैसे-त (< तद्), एअ, एय (एतद्) और आय, आअ, (= इदम् जो कि * अतृ० पर आधारित है); सम्बन्ध वाची ज-(यद्), प्रश्नवाचक-क, कवण-(किम्), निजवाची-अप्प (आत्मन्); अदस् शब्द ही इसका अपवाद है। ये सर्वनाम सामान्यतया संज्ञा के विशेषण रूपों के अनुरूप होते हैं, रूपों की सरलता के निर्देशक हैं। इससे लिंगों और वचनों का भ्रम संज्ञा के रूपों की तरह होता है। पूर्वोक्त रूपों के अतिरिक्त यद, तद् और किम् के रूप समान रूप से चलते हैं। इदम् और एतद् शब्द के रूप स्वच्छन्द रूप से परस्पर मिलते रहते हैं। आत्मन् शब्द का रूप पुल्लिंग एकवचन में चलता है, अवशिष्ट सर्वनाम के रूप अप्रसिद्ध हैं और उनके शब्द रूपों की अपनी कोई खास विशोषता नहीं है जिससे कि उनकी भिन्नता संज्ञा रूपों से दिखायी जा सके। पूर्वोक्त रूपों के सर्वनाम विशेषण रूप होगा-एह (यह), तेह (वह), जेह (वह), केह (क्या), किस (क्यों), किण (क्यों), एवड्डु (इतना), केवड्डु (कितना), जेम (जिस तरह), केम (किस तरह) आदि। क्रिया रूप-रचना ____ अपभ्रंशों के क्रिया रूप प्राकृत और पुरानी न० भा० आ० के बीच के हैं। ये क्रिया रूप भारतीय आर्य भाषा की सरलता और आधुनिकता की ओर निरन्तर झुकाव का निर्देश करते हैं। प्राकृत और न० भा० आ० के समान अपभ्रंश के सामान्य नियमों की क्रिया पद्धति में नाममात्र के मुहावरेदार प्रयोग हैं। क्रिया पद्धति की प्रणाली प्रा० भा०
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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