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________________ 206 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि हैं। वस्तुतः वे सभी धातु सूत्र अपभ्रंश में भी लागू हो जाते हैं। इसलिये कहा जा सकता है कि हेमचन्द्र ने अपभ्रंश के लिये लगभग 378 सूत्रों को लिखा है जबकि शौरसेनी के लिये 27, मागधी के लिये 16, और पैशाची के लिये 26 ही सूत्र लिखे हैं। अगर हम धात्वादेश को छोड़ भी दें तो भी अपभ्रंश के 120 सूत्र बचे रहते हैं। __यह ध्यान देने की बात है कि हेमचन्द्र जैसे वैयाकरण ने भी अपभ्रंश की बोलियों पर ध्यान नहीं दिया है। उस पर इनसे सैंकड़ों वर्ष पूर्व नमिसाधु ने ध्यान दिया था और उस पर विचार किया था। हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों तथा उदाहरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने अपभ्रंश की दो बोलियों को एक में मिला दिया है इसके उदाहरण है : (1) ऋ, ए तथा ग की रक्षा है। 4/329-तृणु, तणु, सुकृदु और सुकिउ; 4/341-गृहन्ति, 4/370-कृदन्त हो; 4/394-ग्रह का गृह-गृह्णप्पिणु। ___ (2) 4/396-स्वर के बाद चवर्ग को छोड़ कर किसी भी वर्ग के असंयुक्त प्रथम वर्ण का तृतीय और द्वितीय वर्ण का चतुर्थ वर्ण में परिवर्तन हो जाता है अर्थात् स्पर्श प्रथम अल्प प्राण का तृतीय स्पर्श अल्प प्राण और स्पर्श द्वितीय महाप्राण का चतुर्थ स्पर्श महाप्राण हो जाता है-4/396- विच्छोह गरु < विक्षोभकरः, सुध < सुख, कधिदु < कथित, सबधु < शपथ, और सभलु < सफल की तुलना कीजिये-4/269-शौरसेनी णाधो, कधं, णाहो, कहं, आदि । (3) असंयुक्त म का अनुनासिक व होता है-कवलु, भवँरू । (4) संयुक्त र व्यंजन की सुरक्षा-4/398- प्रियेण, प्राउ । 4/393-प्रस्सदि; 4/360-g, त्र; 4/422-द्रम्मु, द्रवक्कु; 4/404-प्रयावदी। ___(5) वर्तमान काल ए० व० और ब० व० में उँ और हुँ का वैकल्पिक रूप-4/385, 396-कड्ढउँ, लहहुँ।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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