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________________ अपभ्रंश और देशी _181 समूहों में आने के समय के बीच जो मध्यांतर हुआ, उस समय में कुछ शब्दों का व्यवहार उन आर्यों के घरों में प्रायः समाप्त प्राय हो गया था। पुराकाल में जिस द्वितीय समूह के लोगों ने इस देश में प्रवेश किया, उन लोगों ने उन शब्दों की रक्षा की जिन्हें पूर्ववर्ती प्रथम समूह के लोगों ने छोड़ दिया था। इन दोनों वर्गों के शब्दों के विषय में जे० बीम्स26 ने कहा है कि यद्यपि वे शब्द भारतीय साहित्य में प्रयुक्त नहीं होते थे फिर भी जनता उन शब्दों का प्रयोग करती थी; यहाँ तक कि सामान्य कृषकों द्वारा भी कभी-कभी उनका प्रयोग होता था। इन सभी कारणों पर विचार करते हुए हम देशी शब्द की प्रकृति के संबंध में संभावित अनुमान करते हैं कि वे सभी आर्य शब्द हैं अथवा मूल में वे भारोपीय थे। परिनिष्ठित संस्कृत की शब्दावली के लिये वे उपयोगी सिद्ध नहीं हो सके। कुछ शब्दों के विषय में दोनों-संस्कृत और प्राकृत-जानकारी नहीं रखते। वे शब्द समय के परिवर्तन के साथ परिवर्तित होते गए और हमारे समक्ष उनके विषय में किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं आ पाती। कुछ देशी शब्दों का ज्ञान हमें प्राकृत और संस्कृत के व्याकरणों से होता है। हेमचन्द्र ने बहुत से प्राकृत शब्दों को संस्कृत से व्युत्पन्न माना है जिन्हें दूसरे वैयाकरणों ने विशुद्ध देशी कहा है। अभी विचार किया जा चुका है कि कुछ देशी शब्द प्राकृत से, कुछ भारोपीय बर्नाक्युलर से और कुछ द्रविड़ भाषाओं की बोलियों से लिए गए हैं। द्रविड़ भाषाओं में देशी शब्द उच्चारणध्वनि के विशेष अंग समझे जाते हैं। किंतु देशी शब्द के मूल के विषय में पूर्ववाली दृष्टि भाषाविषयक वंचना ही कही जा सकती है जो उनका मौलिक उत्तराधिकार समझा जाता है। वस्तुतः ऐसा प्रतीत होता है कि भारोपीय वर्नाक्यूलर की बोली से 'देशी' शब्द लिए गए हैं और तत्सम तथा तद्भव के बगल में रख दिए गए हैं। परिणामस्वरूप सभी द्रविड़ भाषाओं की ध्वनियाँ भारोपीय भाषाओं से ली गई हैं। इस तरह, दक्षिण भारत के भाषा-वैज्ञानिकों के अनुसार, द्रविड़ और भारोपीय भाषाओं का आंतरिक सम्बन्ध घनिष्ठ हो गया। इन सभी दृष्टियों से द्रविड़ लोग हमारे देश में आर्यों से पूर्व आए हुए माने जाते हैं। किंतु द्रविड़ भाषाओं
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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