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________________ चतुर्थ अध्याय अपभ्रंश और देशी देशी शब्द की व्याख्या अपभ्रंश के साथ बहुधा 'देशी' शब्दों की चर्चा की जाती है। सर्वप्रथम हमें 'देशी' शब्द पर ही विचार करना चाहिए। संस्कृत वैयाकरणों ने कहीं भी देशी शब्द की चर्चा नहीं की है। यह अवश्य है कि पाणिनि की अष्टाध्यायी में स्पष्टतः कई जगह देश' शब्द का प्रयोग हुआ है। पाणिनि के सूत्रों में प्रयुक्त देश शब्द के उदाहरण से प्रतीत होता है कि यह 'प्रांत के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। 'देश' शब्द के पूर्व यदि 'एक' जोड़ दिया जाय तो वह ग्राम, जनपद शब्द से अञ, ठञ प्रत्यय करके 'एक भाग' के अर्थ में भी प्रयुक्त होता था। पाणिनि के पूर्व यास्क' ने निरुक्त में प्रत्यक्ष रूप से देश शब्द का प्रयोग न करके 'दातिः' शब्द पर विचार करते हुए लिखा है कि इसका अर्थ कंबोज में कुछ होता है तो उदीच्य में कुछ दूसरा ही। इस पर दुर्गाचार्य ने टीका करते हुए उदीच्य आदि के आगे 'देशेषु' का प्रयोग किया है। अतः इससे भी सिद्ध होता है कि यह 'देश' शब्द 'प्रान्त' के अर्थ में प्रयुक्त होता था। महर्षि व्यास ने महाभारत के शल्यपर्व में विभिन्न भाषाभाषियों के बारे में वर्णन करते हुए 'देश' शब्द के साथ 'भाषा' शब्द का भी उल्लेख किया है जिससे प्रांत या जनपद का ही बोध होता है। देशभाषा का प्रयोग विभिन्न बोलियों के अर्थ में भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में भी मिलता है: अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि देशभाषा विकल्पनम्। अथवा छंदतः कार्या देशभाषा प्रयोक्तृभिः ।।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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