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________________ ! अपभ्रंश भाषा 167 82. गौडौद्र वैव पाश्चात्यपाण्ड्यकौन्तल सैंहलाः । कालिङ्ग्यचप्राच्य कार्णाट काञ्च्यद्राविड गौर्जराः ।। आभीरो मध्यदेशीयः सूक्ष्मभेद व्यवस्थिताः । सप्त विंशत्यपभ्रंशाः वैतालादि प्रभेदतः ।। प्राकृतसर्वस्व-पान-2 टीका 80. अपभ्रंश पाठावली-पृ० 13-प्रकाशन-गुजरात वर्नाक्युलर सोसाइटी, अहमदाबाद 1933 81. नागरो ब्राचडश्चोपनागरश्चेलि ते त्रयः । अपभ्रंशाः परे सूक्ष्मभेदत्वान्न पृथङ्मताः। प्रा० सर्वस्व पृ० 3 अन्येषामपभ्रंशानामेष्वेवान्तर्भावः । प्रा० सर्वस्व पृ० 122 पाण्ड्य केकय बाहलीक सिंह नेपाल कुन्तलाः । सुधेष्ण भोजगान्धार हैव कन्नौजनस्तथा ।। 291 एते पिशाचदेशाः स्युस्तद्देश्यस्तद्गुणो भवेत् ।। षड्भाषाचन्द्रिका प्रकाशनमुम्बपुरीस्थराजकीयग्रन्थमालाधिकारिका ई० सन् 1916 संस्कृत साहित्य का इतिहास अनु० डा० मंगलदेव शास्त्री, पृ०. 24| 84. इन्ट्रोडक्शन टु प्राकृत पृ०-2 प्रकाशन-पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर। 85. डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य की भूमिका पृ० 24-25-1948 ई०। . 86. पुरानी हिन्दी-पृ० 9। प्रकाशन-नागरी प्रचारिणी सभा, काशी। 87. दोहाकोश की भूमिका-पृ० 6–प्रकाशन-बिहार राष्ट्र भाषा परिषद 88. हिन्दी साहित्य की भूमिका-पृ० 26-27-प्रकाशन-हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय-बम्बई-सन 1950 । 89. अपभ्रंशो नाम न स्वतन्त्रः कश्चन विद्यते। सर्वस्यह्यपभ्रंशस्य __. साधुरेवप्रकृतिः-वाक्यपदीय-पुण्यराज-1/1471
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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