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________________ (xvii) अपभ्रंश का परवर्ती रूप अवहट्ट माना जाता है। व्याकरण पर विचार करते समय अवहट्ट के उदाहरणों का भी अवलम्बन लिया है, विशेषकर उस समय जब अपभ्रंश से हिन्दी का विकास दिखाया गया है। मुझे पिशेल के प्राकृत व्याकरण एवं तगारे के हिस्टॉरिकल ग्रामर ऑफ अपभ्रंश ने इस दिशा में कार्य करने में प्रचुर सहायता दी है। मैं उन लोगों के प्रति अपना विनम्र आभार व्यक्त करता हूँ । नागरी प्रचारिणी सभा, काशी और सरस्वती पुस्तकालय वाराणसी के अधिकारियों का मैं आभारी हूँ जिन्होंने मुझे अप्राप्य पुस्तकें उपलब्ध करवायीं । जब मैंने इस विषय पर कार्य करने की इच्छा, आदरणीय आचार्य प्रो० देवेन्द्रनाथ शर्मा से की, तो उन्होंने सहर्ष स्वीकृति प्रदान करते हुये मुझे उत्साहित किया था। उन्होंने जो निर्देशन और प्रदर्शन किया उसके लिये मैं श्रद्धावनत हूँ। वस्तुतः उन्हीं की प्रेरणा से यह प्रबन्ध प्रस्तुत हो सका है। कार्यों में व्यस्त रहते हुये भी प्रबन्ध की जो रूप रेखा उन्होंने दी है उसके लिये औपचारिक कृतज्ञता ज्ञापित करना धृष्टता होगी। किन्तु सत्य बात तो यह है कि यह प्रबन्ध पूर्ण ही नहीं होता यदि परम आदरणीया त्यागमयीमूर्ति श्रद्धेया प्रातः स्मरणीया स्वर्गीया माँ श्रीमती सोनफूल देवी का आशीर्वाद न होता अतः मैं उसे सश्रद्ध समर्पित कर रहा हूँ । राँची 1991 परममित्र शास्त्री
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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