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________________ 154 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि (ङ) खल्लडउ खल्लड़, चम्पिज्जइ-चांपल जाय, वद्दलि=वदरे, लुक्क=लुकल में जो समानता है, वह दोनों भाषाओं के तात्त्विक सम्बन्ध को सूचित करती है। पिशेल ने प्राकृत व्याकरण की भूमिका में (83) देश भेद से अपभ्रंश का बहुत सा भेद मानते हुए शूरसेन प्रदेश की शौरसेनी अपभ्रंश को प्रमुख भाषा माना है। यह कभी शूरसेन प्रदेश की जनता की बोली रही। आजकल इसकी परम्परा में गुजराती और मारवाड़ी भाषायें हैं। पिशेल के अनुसार एक शौरसेनी प्राकृत भी थी जो कि कृत्रिम भाषा थी और नाटकों के काम में लायी जाती थी। इसकी सारी रूपरेखा संस्कृत से मिलती है; किन्तु शौरसेनी अपभ्रंश में भी आत्म संवेदनामय कविता लिखी जाती थी और आत्म संवेदनामय कविता की मुख्य प्राकृत भाषा में महाराष्ट्री के ढंग पर गीत, वीर रस की कवितायें रची जाती थीं; इसमें बोली के मुहावरे आदि मुख्य अंग वैसे ही रहते थे जैसे कविता में प्रचलित थे। हेमचन्द्र ने (8/4/446) सूत्र में इसका उदाहरण दिया है : ____कण्ठि पालंबु किदु रदिए, शौरसेनी प्राकृत में इसका रूप कण्ठे पालंबं किदं रदीये और महाराष्ट्री में कण्ठे पालंबं कअम रईए। जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि इसी अपभ्रंश का विस्तार साहित्यिक भाषा के रूप में समस्त भारत में हुआ। हेमचन्द्र ने जिस अपभ्रंश का व्याकरण लिखा वह वस्तुतः यही अपभ्रंश थी। निरर्थक ही श्री मोदी जी ने इस अपभ्रंश का उद्गम स्थल राजस्थान और गुजरात को माना है। उनके अनुसार यहीं से यह भाषा साहित्यिक क्षमता प्राप्त कर उत्तर आर्यावर्त में फैली। इस साहित्य पर उत्कृष्ट
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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