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________________ अपभ्रंश भाषा 129 गया था। कुछ दिनों के बाद ऐसी रचना अप्रचलित हो गयी और इसका पुनः जनता की भाषा में अनुवाद किया गया तथा देशी शब्द भरे गये। डा० ग्रियर्सन का कहना है कि इस प्रकार के ग्रन्थों को, स्थानीय प्राकृत को अपभ्रंश अथवा अपभ्रष्ट कहा गया और जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है, स्थान के अनुसार रूप में भी अन्तर था। इन्होंने भी अपभ्रंश के दो रूप स्वीकार किये हैं-एक साहित्यिक अपभ्रंश, दूसरा स्थानीय अपभ्रंश या प्रान्तीय अपभ्रंश। साहित्यिक अपभ्रंश मुख्य रूप से 'नागर शैली' में लिखी गयी है। नागर अपभ्रंश का साहित्यिक महत्व प्राकृत साहित्य की ही तरह अधिक बढ़ गया। इसीमें पश्चिम भारत की अपभ्रंश की रचना हुई थी। राजशेखर ने अपभ्रंश साहित्य की रचना का मुख्य केन्द्र स्थल पश्चिम भारत को माना है। इसके अन्तर्गत पंजाब, राजस्थान तथा कुछ लोगों ने गुजरात को भी स्थान दिया है। जन साधारण ने जब इसे स्वीकृति दे दी तो बाद में भारत वर्ष के विस्तृत भूभाग में साहित्यिक रचनाओं की वाहिका के रूप में स्वीकृत हुई। विस्तृत भूभाग में इस नागर अपभ्रंश में रचना होने के कारण यह स्वाभाविक था कि कुछ न कुछ अन्तर आवे। कुछ न कुछ स्थानीय प्रयोगों का रूप आ जाना स्वाभाविक ही था। इसका तात्पर्य यह नहीं था कि इसकी कई उपबोलियाँ हो गयी थीं। ग्रियर्सन का कहना है यहाँ एक बात भलीभाँति समझ लेनी चाहिये कि किसी भी प्रकार ये विभिन्न रूप उन अनेक स्वतन्त्र तथा स्थानीय अपभ्रंशों अथवा भाषाओं की भाँति नहीं थे जो उनके बोलने वालों द्वारा साहित्य में प्रयुक्त की जाती थी। इनमें से प्रत्येक में जो स्थानीय भेद था वह स्थानीय बोलियों के नहीं अपितु वे साहित्यिक अपभ्रंश के भेद थे। इस प्रकार नागर अपभ्रंश का साहित्यिक महत्व सर्वत्र स्थापित हो गया था। शब्द समूह की दृष्टि से यह साहित्यिक प्राकृत के अतिनिकट थी। इसका व्याकरणात्मक रूप देश्य या देशी रूप के समान स्थापित हो गया था जबकि यह साहित्यिक मर्यादा प्राप्त कर देशी रूपों से पृथक हो गया
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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