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________________ 124 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि हो जाती हैं। कारण कि वे शब्द-प्रयोग उस काल की जीवित भाषा के प्रतिनिधि हैं। नाटकों की प्राकृत की तरह कृत्रिम नहीं हैं जो कि तद्भव प्रधान हैं तथा व्याकरण के अनुसार सभी अर्थ लगाया जाये। जो जीवित भाषा का प्रतिनिधित्व करेगी वह स्वभावतः कभी न कभी व्याकरण विरूद्ध अवश्य हो जायेगी। इसका प्रयोग स्थल-स्थल पर देखने को मिलता है। तात्पर्य यह कि अपभ्रंश साहित्य देशी भाषा का प्रतिनिधित्व करती है; जनता का प्रतिनिधित्व करती है, संस्कृत की तरह वह कुछ विशिष्ट वर्गों का ही प्रतिनिधित्व नहीं करती। भारत में आने वाली जितनी भी जातियाँ यहाँ की जातियों में खप सकती थीं या खपी उन सभी को भारत ने आत्मसात कर लिया। उन लोगों ने भी इस भाषा को अपना लिया। यह उन लोगों की भी भाषा हो गयी। स्वभावतः उन लोगों के साथ आयी हुई भाषा के कुछ शब्द रूप भी इसमें घुलमिल गये। इस प्रकार न जाने कितने ऐसे शब्द रूप इसमें घुलमिल गये, घिसपिट गये कि अब उनका पता लगाना भी मुश्किल है। संस्कृत में भी ऐसे बहुत से शब्द घुले मिले हैं। किन्तु वहाँ उच्चस्तरीयता की भावना थी; अपने को सबसे भिन्न समझने की भावना थी। अतः दूसरे के शब्दों को परिष्कृत करके अपनी संस्कृत में सुसंस्कृत करके अपनाया है। यही दोनों का मौलिक अन्तर है। एक विशिष्ट वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है तो दूसरा जन सामान्य का। इस पैमाने पर विचार करने का एक मात्र लक्ष्य यही है कि अपभ्रंश जिस काल में जनता की भाषा थी वह काल भारत का संक्रान्ति काल था। समस्त भारत खण्डशः विभक्त हो चला था। भारत में उथल पुथल हुआ था। यद्यपि कुछ राजाओं ने इसे एक संत्र में पिरोने की कोशिश की, किन्तु वह कोशिश मात्र ही रही। उस युग की कुछ ऐसी विशेषता है या विचित्रता है कि हर शक्ति सम्पन्न आदमी अपने आपको राजा के रूप में देखना चाहता है। शक्ति सम्पन्न राजा सम्राट का स्वप्न देखता है। पूरब से पश्चिम तक और पश्चिम से पूरब तक सर्वत्र यही बात छायी
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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