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________________ (xii) आमुख आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन के लिये मध्य भारतीय आर्यभाषाओं का अध्ययन परमावश्यक है, विशेषतः अपभ्रंश का अध्ययन तो अत्यावश्यक है। शनैः शनैः अपभ्रंश का साहित्य भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त होने लगा है। अपभ्रंश आधुनिक सभी भारतीय आर्यभाषाओं का आधार स्वरूप है। हिन्दी में जो अयोगात्मकता है उसका बहुत कुछ स्रोत अपभ्रंश ही है। संस्कृत संश्लिष्ट भाषा है, पालि और प्राकृत भी बहुत कुछ मात्रा में उससे अपना पिंड नहीं छुड़ा पातीं, किन्तु अपभ्रंश ने उससे अपने को मुक्त कर लिया है। इस दृष्टि से हिन्दी का अपभ्रंश से बहुत अधिक सामीप्य है। हिन्दी भाषा का समुचित रूप समझने के लिये अपभ्रंश का अध्ययन आवश्यक है। अब तक मुझे हिन्दी में विशुद्ध रूप से अपभ्रंश भाषा और व्याकरण पर कोई उल्लेख्य ग्रन्थ देखने को नहीं मिला। डॉ० नामवर सिंह का हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योगदान और डॉ० भोला शंकर व्यास का प्राकृत पैंगलम् का भाषा शास्त्रीय और छन्दः शास्त्रीय अध्ययन अवश्य अपभ्रंश पर प्रकाश डालते हैं। डॉ० नामवर सिंह ने भाषा और साहित्य की दृष्टि से अपभ्रंश का मात्र परिचयात्मक ज्ञान करवाया है। डॉ० भोलाशंकर व्यास ने अवहट्ट पर ही विशेष दृष्टि डाली है और छन्दः शास्त्रीय अध्ययन पर ही विशेष बल दिया है। डॉ० श्री तगारे का अंग्रेजी में लिखित अपभ्रंश व्याकरण मूल्यवान् अवश्य है किन्तु उनका ध्यान अपभ्रंश शब्दों के विकासात्मक अध्ययन पर विशेष है। . विशुद्ध भाषा और व्याकरण की दृष्टि से अपभ्रंश का और विशेषतया हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों को आधार मानकर अध्ययन अभी तक हिन्दी में नहीं हआ है। यहाँ पहली बार हिन्दी में ऐसा अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। पुरानी भाषा के विकास में अपभ्रंश के योगदान पर विचार करते हुये अपभ्रंश व्याकरण का अध्ययन करके, उससे आधुनिक भाषाओं का विशेषतया हिन्दी का, विकास दिखाया गया है। इस कारण हिन्दी भाषा और व्याकरण की
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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