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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि होता है कि इस भाषा का शनैःशनैः दो रूप होता जाता रहा था? एक सुसंस्कृत परिष्कृत रुचि वालों का रूप और दूसरा जन-साधारण भाषा का रूप जिसमें कि ग्राम्य गीत आदि गाये जाते होंगे। रुद्रट के अनुसार अपभ्रंश रुद्रट ने अपनी काव्य माला में अपभ्रंश का वर्णन किया है। डा० एस० एन० दासगुप्त के अनुसार इसका समय ई० सन नौवीं शताब्दी है। यह राजशेखर से पूर्व हुए थे और वामन के पुत्र माने जाते हैं। अलंकारशास्त्रीय काव्य माला में गद्य और पद्य का भेद करने के अनन्तर उन्होंने छह भाषाओं का भेद किया है। उनका कहना है कि विभिन्न भाषाओं के आधार पर भाषा का भेद करना संभव हुआ है, वे हैं-संस्कृत, प्राकृत, मागध, पैशाची, शौरसेनी और छठा अपभ्रंश। उस अपभ्रंश के बहुत से भेद होते हैं और देश विशेष के रूपों से वह जाना जाता है।40 दण्डी के बाद रुद्रट की बात से हमें ज्ञात होता है कि अपभ्रंश के बहुत से भेद होते हैं जो कि विभिन्न क्षेत्रीय बोलियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्राकृत भाषा का तो पता चलता आ रहा है किन्तु प्राकृत की बोलियों का पता हमें नहीं है जिससे विभिन्न अपभ्रंशों का पूर्ण स्पष्टीकरण नहीं हो पाता और अनुमानाश्रित कल्पना ही करनी पड़ती है। रुद्रट पर नमिसाधु ने टीका लिखी है जिस पर बाद में विचार करेंगे। कुवलय माला कहा-देशी भाषा का अपभ्रंश के अन्तर्गत समाहार कुवलय माला कहा के लेखक उद्योतन सूरि (वि० सं० 835) ने अपभ्रंश को आदर की दृष्टि से देखा है और अपभ्रंश काव्य की प्रशंसा भी की है।41 कुवलय माला के कर्ता का यही अभिप्रेत था कि 4 भाषाओं में अपभ्रंश का भी स्थान था। जब अपभ्रंश का बहुत सा भेद माना जाने लगा तो उस समय लोगों ने देश भाषा और अपभ्रंश भाषा को एक ही समझकर वर्णन करना आरम्भ किया। प्रायः हम देखते हैं कि रुद्रट के बाद कुछ आचार्यों . का यह विचार ही हो जाता है कि अपभ्रंश वस्तुतः देश विशेष
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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