SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि आभीर आदि शब्द पर विचार ___दण्डी के निर्देश से दो मुख्य बात हमारे सामने आती है। अपभ्रंश का दो स्वरूप हमारे सामने उपस्थित होता है। एक है परम्परा की विचारधारा को प्रस्तुत करना और दूसरा है तत्कालीन काव्य शैलियों को स्पष्ट करना। उसने स्पष्ट बताया है कि व्याकरण में संस्कृत से भिन्न शब्दों को अपभ्रंश कहते हैं अर्थात् उसके समय में भी (जबकि अपभ्रंश साहित्य काफी समृद्ध हो चुका था) यह पुरानी रुढ़िवादी विचारधारा प्रचलित थी। दूसरी बात कहकर उसने काव्यशास्त्रीय ऐतिहासिक सत्यता की याद दिलाई है-(काव्यों में आभीर आदि की वाणी अपभ्रंश नाम से याद की गई है) इसमें 'आदि' तथा 'स्मृतः' शब्द विचार करने योग्य है। स्मृतः स्मरण किया गया से विदित होता है कि दण्डी किसी पूर्ववर्ती आचार्य की बात की ओर निर्देश कर रहा है। इससे भी अधिक आभीर शब्द के साथ जुटा हुआ 'आदि' पद भरत के नाट्यशास्त्र की याद दिलाता है। भरत ने ना० शा० के अठारहवें अध्याय में संस्कृत के अतिरिक्त भाषा, विभाषा और देशी भाषा पर विचार किया है। उसने देश भाषा को संस्कृत एवं प्राकृत से भिन्न माना है। उसका कहना है कि इसके बाद मैं देश भाषा का भेद बताऊँगा : एतमेव तु विज्ञेयं प्राकृतं संस्कृतं तथा। अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि देशभाषाविकल्पनम् ।। ना० शा०-18/22-23 इससे स्पष्ट है कि देश भाषा संस्कृत और प्राकृत से भिन्न है। इसका तात्पर्य कथ्य भाषा (Spoken language) से है जो कि विभिन्न प्रान्तों या अँचलों (क्षेत्रीय) में बोली जाती थी। इसके मुख्यतः और भी रूप पाये जाते थे। यह नाटकों में प्रयुक्त होने के कारण काव्य का भी रूप धारण कर लेता था :
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy